कैसे हों पीले हाथ ?

  घर में चारों तरफ खुशी का माहौल था.. आज वर्मा जी की बड़ी बेटी को देखने लड़के वाले पूरे परिवार  के साथ आ रहे थे। वर्मा जी भी जोर-शोर से मेहमानों की खातिरदारी की तैयारी में जुटे थे। सुबह -सुबह ही हलवाई से समोसे- कचोरी और मिठाईयां  लेकर आए।  मध्यमवर्गीय परिवार से थे तो ड्राई फ्रूट्स भी अच्छी सी पैकिंग में मेहमानों के सामने पेश करना  ही था। वर्मा जी की श्रीमती भी खुश थी  चलो अच्छा हुआ बड़ी बेटी को देखने के लिए सरकारी जॅाब वाला लड़का आ रहा है। वर्मा जी की बेटी भी पढ़ने – लिखने में होशियार थी. स्नातक, स्नातकोत्तर और बीएड भी सभी कुछ फर्स्ट क्लास। गृह कार्य में भी दक्ष।  राजस्थानी होने के बावजूद राजस्थानी, पंजाबी और साउथ इंडियन खाना बनाने में भी पूरी तरह से पारंगत।  हालांकि आजकल बच्चियों में खाना बनाने को लेकर खास रुचि नहीं होती, या तो उन्हें खाना बनाना नहीं आता या फिर वे शादी के बाद ही सीखती हैं।
लेकिन वर्मा जी ठहरे मध्यमवर्गीय परिवार से तो उनके घर में बेटियां पढाई के साथ ही खाना बनाने में भी एक्सपर्ट थी । लेकिन आजकल लड़कियों से गृहकार्य में दक्ष और खाना बनाना जानती हो या नहीं इस तरह के सवाल कोई नहीं पूछता।  वर्मा जी खुद हालांकि सरकारी कर्मचारी नहीं थे लेकिन चाहत सरकारी जंवाई की थी। जिसके चलते उन्होंने बड़े- बड़े सपने देख रखे थे। उऩ्हें लगता है जितना समाज में उनका रुतबा है उस हिसाब से बेटी के लिए एक अदद सरकारी दामाद तो मिल ही जाएगा। क्योंकि सरकारी नौकरी वाला दामाद होना अब स्टेटस सिंबल बन गया। इन्हीं तमाम सोच के साथ वर्मा जी और उऩकी श्रीमती ने बच्चों को अलग- अलग काम बांट दिए। कौन पानी पिलाएगा ? कौन नाश्ता परोसेगा ? और कौन चाय लेकर आएगा ?  शर्मा जी सिगरेट नहीं पीते थे लेकिन जब मेहमान आ रहे हैं तो उनकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं रह जाए इसलिए सिगरेट भी मंगवा ली। पूरा परिवार इंतजार कर रहा था।
  आखिर इंतजार की घड़ियां खत्म हुई और मेहमान  भी आ गए। गेट खोलकर मेहमानों का वर्मा जी और उनकी पत्नी ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया । सभी मेहमान सोफे और कुर्सियों पर बैठ गए। थोड़ी सी इधर- उधर की बातें शुरु हुई। बात शुरु होने के साथ ही वर्मा जी की छोटी बेटी ने मेहमानों को पानी परोसा। सबकी नजरें  लड़की पर टिक गई। इतने में वर्मा जी बोल पड़े हां ये मेरी सबसे छोटी बेटी है,अभी 10 वीं में पढ़ रही है। सबने राहत की सांस ली। क्योंकि लड़के की उम्र के हिसाब से बच्ची छोटी थी। इसके बाद वर्मा जी की श्रीमती  जी मेहमानों के सामने नाश्ते की प्लेट लेकर हाजिर थी। वर्मा जी ने सबसे परिचय कराया ये मेरी श्रीमती जी हैं। श्रीमती जी ने भी बड़े अदब से मुस्करा कर सबका अभिवादन किया। सबको नाश्ता परोसा गया। सबने बातचीत के साथ ही नाश्ता किया। इस दौरान भी इधर – उधर की बातें चलती रही। इसके बाद असली परीक्षा शुरु हुई लड़की की। लड़की को तो बस चाय लेकर ही आना था। जैसे ही वर्मा जी की बेटी बैठक रुम में चाय लेकर दाखिल हुई  तो सबकी नजरें लड़की के चेहरे पर टिक गई। चेहरे से लेकर पांव तक सब बच्ची को अच्छे से निहारा। वर्मा जी की लड़की दिखने में सुंदर थी तो देखने के बाद सबने राहत की सांस ली। वर्मा जी ने भी परिचय कराया ये है मेरी बेटी स्नातक , स्नातकोत्तर और बीएएड है फर्स्ट क्लास। फर्स्ट क्लास वर्मा जी जानबूझकर बोलते जिससे सामने वाले को लगे बेटी इंटेलीजेंट है।  अभी सरकारी सेवा की तैयारी में जुटी है। इसके साथ ही लड़के वालों की तरफ से लड़की पर सवालों की बौछार शुरु हो जाती है। क्या नाम है ? पढ़ाई कहां से की ? कॅालेज  कौन सा था ? सब्जेट क्या थे ? सांइस थी  तो एमएससी करके नेट सलेट क्यों नहीं किया? अब बीएएड क्यों कर रहे हो ? आईएएस, आरएएस की तैयारी क्यों नहीं की ? फलां एग्जाम दिया था उसका क्या रिजल्ट रहा ? तमाम तरह की बातें पूछी गई। करीब आधे घंटे तक सवाल जवाब के बाद बेटी को जाने के लिए बोल दिया जाता है।
 अब नंबर आता है महिलाओं का। महिलाएं भी लड़की से कभी नीचे बैठने को तो कभी खड़ी होने को कहती हैं, तो कभी कमरे से चौक तक चलकर दिखाने की फरमाइश होती है। आंखों में भेंगापन तो नहीं है। पैरों में किसी तरह की कोई चोट तो नहीं है। किसी तरह की विकलांगता तो नहीं है। किसी दुर्घटना में किसी तरह की चोट का निशान तो नहीं है। तमाम तरह की जांच पड़ताल के बाद लड़की की हाईट को नापा जाता है, कभी लड़के की मां तो कभी लड़के की बहन कंधे उचकाकर देखती हैं. आखिर में लड़के को बुलाया जाता है लड़की के साथ सेल्फी भी ले ली जाती है। इस बहाने दोनों का जोड़ा भी देख लिया जाता है कि अच्छा लग रहा है या नहीं लड़की ज्यादा छोटी तो नहीं है या फिर मोटी तो नहीं दिख रही है। काली है या गौरी इसका आंकलन तो सबसे पहले बॅायोडाटा भेजने पर ही पता कर लिया जाता है। महिलाओं ने भी लड़की से खूब इधर – उधर की बातें की पढ़ाई – लिखाई  से लेकर कॅालेज- तक की।  तमाम तरह के एक के बाद एक सवाल पूछने से लड़की थोड़ी घबराई भी और सकुचाते हुए सभी प्रश्नों का परीक्षा की तरह से जवाब दिया। इसलिए लड़के के साथ आने वाले भी सवाल कर ही लेते है। जिसके जो मन में आया सब अपने – अपने हिसाब से सवाल दागता है। जब लगता है सवाल पूरे हो गए हैं तो अब लड़का – लड़की की बात करा दी जाए। वर्मा जी बेचारे सब देखते रहते है। फिर लड़के – लड़की से एकांत में वार्तालाप होती है। जिसमें लड़का लड़की से वही अनगिनत सवाल पूछता है। मानों शादी सिर्फ लड़की वालों को ही करनी है, बस लड़के वालों के सभी सवालों पर खरी उतरने के बाद लड़की की हां समझो ही।
हालांकि इस दौरान उनमें से कोई ये नहीं पूछता बेटा लड़का तुझे पसंद आया या नहीं । क्योंकि ये तो किसी को जरुरी लगता ही नहीं है। क्योंकि लड़का जब सरकारी जॅाब में है तो वो धरती से वैसे ही पांच ऊंगल ऊपर है और परिवार धऱती से दो फीट ऊपर,  क्योंकि उनकी तो सारी ख्वाहिशें बेटे से ही पूरी होनी है जो उन्होंने ताउम्र देखी है।   खैर लड़की को देखने – समझने के पूर्व भी सारा बॅायोडाटा लड़के वालों के पास भेजा जा चुका था। इसलिए इसमें कोई छिपाने – दबाने वाली कोई बात भी नहीं थी।
अब लड़के के साथ आए लोगों के सवाल शुरु होते हैं वर्मा जी से । लड़की की तरह ही वर्मा जी पर सवालों की बौछाऱ होती है।  वर्मा जी आप क्या करते हैं ? कहां काम करते हैं ? कब से करते हैं ? अच्छा तो आप प्राइवेट काम करते हैं या प्राइवेट कंपनी में जॅाब करते है तो कितना कमा लेते हैं महीने का ? अब वर्मा जी जमीन कुचरते हुए सारे सवालों का हंसी – हंसी जवाब देते जाते हैं। जब वेतन की बात आती है वर्मा जी कहते हैं इतना तो कमा ही लेता हूं जिससे परिवार का गुजर- बसर हो जाता है। नहीं – नहीं फिर भी कुछ तो होगी आपकी सैलरी। कितनी है ? अच्छा तो क्या आप रिटर्न भरते हैं या नहीं भरते ? यदि रिटर्न भरते हैं तो टैक्स कितना देते हैं ? जिससे वर्मा जी की आय का  अंदाजा हो जाए। लोन  वगैरा तो नहीं चल रहा है ? मकान किराए का है या खुद का ? परिवार में और कौन- कौन है ? कौन किस पोस्ट पर है ? या किस विभाग में है ? अब वर्मा जी को अपनी औकात याद आई। बात बेटी की शादी की चल रही है और बॅायोडाटा मेरा खंगाला जा रहा है।
  उन्हें लगा मेरी शादी की बात करने आएं या  है मेरी बेटी की। लेकिन तमाम सवालों के जवाब हंसकर देते रहे वर्मा जी। तब तक लड़के- लड़की की एकांत वार्ता भी पूरी हो जाती है। लड़का मुस्कराता नजर आता है।  उधर से महिलाओं की खुसर- फुसर शुरु हो जाती है। तीन- तीन बेटियां है क्या करेंगे – कैसे करेंगे ? प्राइवेट नौकरी करते हैं आज का पता है कल का कोई पता नहीं क्या होगा। महिलाओं ने तो घर में चारों और तब तक तांक- झांक कर ली थी। हालांकि ये बात महिलाओं की खुसर- फुसर से ही निकलकर आई। जिसका खुलासा सबसे छोटी बेटी ने मेहमानों के जाने के बाद कर दिया। 


  वर्मा जी को लग रहा था कि लड़का  एलडीसी  है, किसी तरह से कोशिश करके जैसे समाज में शादियां हो रही है, वैसी तो कर ही देंगे। लेकिन लड़के के साथ आए लोगों के सवालों से उनका मन छलनी हो चुका था। उनको समझ आ गया था कि मेरी प्राईवेट जॅाब और  एक से ज्यादा  बेटियां होना लड़के वालों की समझ से परे हो सकता है। ये तमाम सवाल वर्मा जी के जेहन में घूमने लगे थे। हालांकि तब तक लड़के वालों में से किसी ने ये बात नहीं कही थी। सब कुछ अच्छे से माहौल में चल रहा था।  चाय का एक दौर और हो जाता है। चाय के दौर के बाद लड़के वालों के जाने का समय होता है।  तब सभी को विदाई देने के लिए वर्मा जी और उनकी श्रीमती जी गेट तक छोड़ने आते हैं। कार में बैठकर रवाना होने तक दोनों नंगे पैर गेट के बाहर ही खड़े रहते हैं। जैसे ही कार स्टार्ट होती है  वर्मा दंपत्ति हाथ जोड़कर विदाई देते हैं। जाते समय तक भी सभी के चेहरों पर चमक है। लड़के वालों के चेहरे भी खिले हुए थे। लड़के के हाव- भाव से लग रहा था की लड़की पसंद है।
 लड़के वालों के जाने के बाद अब बेटी से सवाल जवाब का दौर शुरु हो जाता है। वर्मा जी बेटी से पूछते हैं क्या – क्या पूछा । तब पता चलता है लड़के को  जॅाब नहीं करानी है। उसे घरेलू लड़की ही चाहिए। उसे तो माता- पिता की सेवा करने वाली लड़की चाहिए। उसकी पहली ही शर्त ये थी लड़की कभी किसी नौकरी की तैयारी नहीं करेगी। तैयारी कर भी रही है तो उसे ड्राप करना होगा। क्योंकि वे लड़की को रोजगार पर नहीं देखना चाहते। इतना सुनते ही लड़की के आसूं बह निकले, पापा क्या मैंने पढ़ाई इसलिए की है कि में सिर्फ बंधुआं मजदूर बनकर रह जाऊं। आपने भी तो बड़ी मुश्किलों से मुझे पढ़ाया – लिखाया है। आज मैं जब अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल हूँ तो मैं ऐसे परिवार में शादी क्यों करूं जहां उन्हें एक कमरे में कैद रहने वाली बहू चाहिए। मुझे तो किसी भी तरह से जॅाब करनी है। इसकी तैयारी करनी है। बस इतना सुनते ही वर्मा जी बोले बेटा सही है मैं तेरे साथ हूं। मैं भी यही चाहता  हूं की तू अपने पैरों पर खड़ी हो। तेरे दम पर तेरी पहचान बने ।
आज नहीं तो कल और लड़का देखेंगे। लेकिन पहले लड़के वालों का एक बार जवाब तो आने दे  हो सकता हो उनका मन तेरी योग्यता और पढ़ाई में रुचि देखकर बदल जाए। वे भी तो सब पढ़- लिखे नौकरी वाले लोग हैं। आधुनिक विचारधारा के लोग हैं और हां उनकी खुद की लड़की भी बीएएड कर रही है। क्या वे अपनी बेटी को बीएएड सिर्फ घर बैठाने के लिए करा रहे होंगे। वे भी तो अपनी बेटी को अपने पैरों पर खड़े होते  देखना चाहते होंगे। अभी उनके जवाब का इंतजार करते है। देखते हैं उनके मन में क्या चल रहा है इसका भी तो  पता तो चले। 
 इस देखा-दिखाई को 10 दिन बीत चुके थे। पूरा परिवार जवाब के इन्तजार में था. ऐसे में वर्मा जी ने ना चाहते हुए भी मिडिएटर को फोन लगा लिया। इधर- उधर की बात करने के बाद मिडिएटर से पूछा क्या रहा जी कोई जवाब आया क्या। इस पर मिडिएटर बोला वर्मा जी जवाब आते ही सबसे पहले आपको फोन करुंगा। बात भी सही है। जब वहां से हां या ना  होगी तो जवाब तो देगा ही। कुछ दिन और बीत गए। कुछ दिनों बाद मिडिएटर का फोन खनखनाया, फोन उठाते ही बोला वर्मा जी मेरी नजर में एक और सरकारी नौकरी वाला लड़का है साधारण परिवार से है, कहो तो बुलावा लूं। वर्मा जी बोले जो पहले देख कर गए हैं उनका जवाब तो आ जाने दो। मिडिएटर फोन पर ही.. क्या है वर्मा जी बाकी तो सब सही है लड़की भी पसंद है.. डिग्री और रंग -रुप हाईट-पर्सनल्टी भी, लेकिन लड़के वाले सिंगल लड़की देख रहे हैं, जिस परिवार में एकलौती बेटी होगी वहीं शादी करेंगे। उन्हें लगता ज्यादा बड़ा परिवार नहीं होना चाहिए। फिर वो समधी भी सरकारी सेवा वाला ही देख रहे हैं। जिससे बात बराबर की हो। इतना सुनते ही वर्मा जी बोल पड़े तो क्या आपने उन्हें आने से पहले  नहीं बताया था कि वर्मा जी प्राइवेट सैक्टर में जॅाब करते हैं, वर्मा जी के तीन बेटियां हैं.. नहीं – नहीं वर्मा जी ये सब बातें तो आपने सीवी में भी लिखी हैं। मैने फोन पर भी बता दी थी लेकिन अब उनका मन बदल रहा है।
उन्होंने सीधे मूंह तो मना नहीं किया लेकिन मुझे बता दिया कि उनके लिए ऐसे परिवार की तलाश करूँ जो खुद सरकारी कर्मचारी- अधिकारी हो। बेटी इकलौती हो। नौकरी करने की चाहत नहीं हो। बस उनके इसी जवाब में मैने  आपके सवाल का जवाब तलाश लिया है ।  मुझे लगता है लड़की  तो अपनी जगह सही है लेकिन वर्मा जी आपकी हैसियत  आड़े  आ रही है। आप चिंता नहीं करे मैं जल्दी ही आपके लायक दूसरा रिश्ता देखता हू्ं। हां आपके बजट का भी खुलासा कर देते तो सही रहता। बजट- बजट ये तो  जैसा समाज में चल रहा है उसके अनुसार , जो मेरी हैसियत होगी जरुर करुंगा।  ये जवाब देते- देते वर्मा जी थोड़े से मायूस हो गए।    ये बातें सुनकर वर्मा जी के चमकते हुए चेहरे का रंग उड़ गया।
वर्मा जी को  अपने आप पर  बड़ा गुरुर था वो सब  चकनाचूर हो चुका था। क्योंकि वर्मा जी सोचते थे मैने अपनी बेटियों की पढ़ाई इंगलिश मीडियम स्कूल में कराई। कॅालेज शिक्षा का माध्यम भी अंग्रेजी ही रहा। पढ़ने में भी बच्चियां होशियार थी। गृहकार्य में भी निपुण ही  हैं। देखने में भी अच्छी और संस्कारी भी और तो और वर्मा जी की नौकरी भले ही प्राईवेट थी लेकिन समाज में रुतबा अच्छा था। पैसा कम था लेकिन लोग नाम सम्मान से लेते थे। इसलिए उन्हें लगता था की बेटी की शादी तो वे एक झटके में कर देंगे। लेकिन जब खुद की बेटी  के लिए दामाद ढ़ुढ़ंने निकले तो  उन्हें अपनी औकात का अहसास हुआ।
  वर्मा जी गलत थे क्योंकि जब वे खुद सरकारी कारिंदे नहीं हैं तो उन्हें सरकारी नौकरी वाले जंवाई की ख्वाहिश भी नहीं पालनी चाहिए। क्योंकि सरकारी नौकरी पेशा लोगों का तो समाज ही अलग हो गया है वे भले ही किसी भी जाति- बिरादरी के क्यों ना हो।  वर्मा जी को भी जोर का झटका धीरे से लगा।  अब बेटी के लिए फिर नए सिरे से वर ढ़ुढ़ने में जुट गए हैं। लेकिन अब वर्मा जी को अपनी औकात को ध्यान में रखना होगा। तभी उनकी तलाश पूरी होगी। उन्हें भी एक अदद सरकारी जवांई का सपना छोड़ना होगा। क्योंकि सरकारी नौकरियां तो बहुत कम हैं। सरकारी कारिंदों से रिश्ता जोड़ने वाले भी कतार लगाकर खड़े हैं। वे लड़कों के पद के अनुसार बोली लगाने को भी तैयार हैं। जैसा पद वैसे दाम में दूल्हा खरीदने को तैयार हैं।  
वर्मा जी को अपनी हैसियत के अनुसार ही हाथ – पैर मारने होंगे। वरना फिर उऩ्हें इसी तरह से अपमान का सामना करना पड़ सकता है। न जाने कब तक उन्हें इस काम  के लिए दौड़ना और भटकना पड़ सकता है। चलो देर से ही सही वर्मा जी को भी अपनी गलती का अहसास हो गया की जितनी चादर हो पैर उतने ही पसारने चाहिएं… लेखक-( नीरज मेहरा)
नोट ये किसी वर्मा या शर्मा जी मामला नहीं है ये वर्तमान में समाज में आजकल जिस तरह का परिदृश्य नजर आ रहा है उसके आधार पर ये लेखक के अपने निजी विचार है।


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