एक ग्रामीण गरीब वंचित कमजोर परिवार का व्यक्ति था! बाबासाहेब के दिए शिक्षा स्वतंत्रता, तथा समानता की वजह से अच्छा जीवन जी पा रहा था। साथ ही आनुपातिक प्रतिनिधित्व के कारण सरकारी नौकरी में भी जगह बना सका था। अब शहर में आकर महत्वाकांक्षाओं ने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और मैं उच्च पद पर पहुंचा । अब मेरी इच्छा थी कि दूसरों के जैसे हम भी बड़े आलीशान घर, गाड़ी व सुविधाओं का उपयोग करे। जो उच्च पद प्राप्ति से संभव हो गया था। लेकिन नेक्स्ट जेनरेशन भी इस सफलता के मार्ग पर चले इसलिए उनके रास्तों को सरल बनाना जरूरी था। जो हर तरह किया भी बच्चों को अच्छी स्थिति, अच्छी शिक्षा, विदेशी शिक्षा अच्छी नौकरी, उच्च कुल में विवाह सभी जरूरी थी इसलिए मैंने हर प्रयास किया। अपने जीवन को उसमें झोंक दिया। ये सब करते करते उम्र का वह पढ़ाओ आ गया जहां घर परिवार की जिम्मेदारियां समाप्त हो गई लेकिन अब बुढ़ापे में कुछ सक्रिय रहना भी जरूरी था। तो लगा कोई संस्था के माध्यम से राजनीति में प्रवेश किया जाए ,ताकि समाज के लिए कुछ कर सके। लेकिन अब शरीर कम साथ दे रहा ज्यादा भागदौड़ संभव नहीं है। इसीलिए जरूर किसी एक राजनीतिक पद प्राप्त कर समाज की सेवा की जाए। ज्यादा भागदौड़ संभव नहीं थी इसलिए जरूरी है कि सीधे ही राजनीतिक पद प्राप्त कर समाज सेवा की जाए तो नई यात्रा शुरू कीजिए राजनेताओं को नजदीक आने की और पद प्राप्ति कि कुछ साल दर साल उम्मीद के साथ निकले पद प्राप्ति की संभावनाएं बनी बिगड़ी भी क्योंकि पता चला मेरे समाज का तो हर व्यक्ति किसी लाइन में खड़ा है और बड़ी लंबी कतार है। अब उम्र ढलती जा रही थी और मैं बिना बिना स्वास्थ्य शरीर ,बिना पैसे, बिना राजनीतिक पहचान के लिए समाज में कुछ भी नहीं कर पा रहा था। अंत हीन महत्वाकांक्षा लिए आज बैठा- बैठा सोच रहा हूं काश समाज के लिए यह सब में तब ही करता जब शरीर, पद और अर्थव्यवस्था से और सामाजिक संबंधों में ज्यादा मजबूत था और आसानी से कुछ भी कर सकता था, जैसे अपने परिवार के लिए मैंने उस समय किया था । ज्यादा बेहतर होता शायद समाज का और अपने लोगों का ज्यादा अच्छा कर पाता।

बाबा साहेब भी चाहते तो उनके सब बच्चे विदेशों में अच्छी शिक्षा लेकर शानदार जीवन जी रहे होते।

सीमा हिंगोनिया अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जयपुर।

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