जयपुर ।जिले के पावटा ग्राम पंचायत कैरोड़ों की ढाणी जाटाला में दलित दूल्हे की बारात पर तोरण मारते समय कुछ असामाजिक तत्वों ने जमकर पथराव कर दिया। पथराव में एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो गए । खास बात है कि दलित परिवार ने संभावित घटना को देखते हुए पहले ही जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन को इसके लिए प्रार्थना पत्र दिया था।

पुलिस की मौजूदगी में पथराव

पीड़ित परिवार की अपील पर पुलिस जाब्ता मौके पर तैनात था लेकिन असामाजिक तत्वों का हौसला इतना बुलंद था कि रात 11:00 बजे जब तोरण मारा जा रहा था तो पुलिस की मौजूदगी में ही गांव के असामाजिक तत्व भारी संख्या में आए और उन्होंने बारात पर पथराव कर दिया । अचानक हुए पथराव से अफरा-तफरी मच गई। हाहाकार मच गया और लोग बचने के लिए इधर-उधर भागने लगे । हादसे में एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो गए। हालांकि पुलिस की पकड़ में एक भी व्यक्ति नहीं आया। जिससे साफ है कि असामाजिक तत्वों को पुलिस की भी शह रही होगी । पुलिस के अनुसार जाटावाली के हरिराम बलाई ने 15 नवंबर को ही पुलिस को परिवाद देकर बताया था कि उसकी बेटी उषा की शादी 25 नवंबर को विकास के साथ होने वाली है, और इस दौरान गांव के कुछ लोग नहीं चाहते कि दूल्हा घोड़ी पर बैठ कर आए। जबकि परिवार के लोग चाहते थे कि आजादी के 70 साल हो चुके हैं, अब तो कम से कम घोड़ी पर बैठकर तोरण मारा जाए । संभावित विरोध को देखते हुए बेटी के पिता ने पुलिस से जाब्ता तैनात करने की मांग की थी। इस पर पुलिस जाब्ता भी तैनात था लेकिन बदमाशों ने निहत्थे लोगों पर हमलाकर बता दिया कि वे कायर लोग है इसी तरह से सालों से अत्याचार करते रहे हैं। जब भी मौका मिलता है अपनी भड़ास कमजोर वर्ग के लोगों पर निकाल देते है। धटना से समूचे दलित समाज मे आक्रोश है।

28 नवम्बर को फिर है शादी

28 नवंबर को उसके दो और बेटों की भी शादियां है। इसके लिए भी पर्याप्त सुरक्षा की मांग की थी लेकिन इससे पूर्व बेटी की शादी में ही बवाल हो गया। हालांकि बड़ी संख्या में पुलिस जाब्ता तैनात था। इसके बावजूद पुलिस की मौजूदगी में तोरण मारने के दौरान पथराव हो गया। पथराव में पुलिस की गाड़ियां भी क्षतिग्रस्त हो गई। मौके पर एडीएम जगदीश आर्य, एसडीएम राजवीर यादव ,तहसीलदार मनीष अग्रवाल, एएसपी राजेश , डीएसपी दिनेश यादव समेत आसपास के सभी थानों का भारी जाब्ता तैनात है लेकिन अभी तक आरोपी पकड़ से दूर है।

बूंदी में भी 3 दूल्हों को घोड़ी उतारा

बूंदी में भी 3 दलितों को परंपरा के नाम पर घोड़ी से उतार दिया गया । स्थानीय दबंगों ने पुलिस की मौजूदगी में कहां के हमारे गांव में परंपरा नहीं कि कोई भी व्यक्ति घोड़ी पर बैठकर बारात निकाले। इस आधार पर उन्होंने मेघवाल परिवार के 3 दूल्हों को घोड़ी से उतारकर कार में बैठाकर रवाना किया । जाहिर सी बात है कि यहां पर भी भारी संख्या में पुलिस बल और प्रशासनिक अमला तैनात था जो बार-बार दलित परिवार को ही दबाव बार डाल रहा था की क्यों आप सर दर्द मॉल लेना चाहते हैं, पूरे गांव का माहौल खराब करना चाहते हैं ,जैसा सालों से चलता है वैसा ही क्यों नहीं करते । इससे साफ बात है की पुलिस और प्रशासन को जो काम असामाजिक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करना था वो तो किया नहीं गया। यदि पुलिस 10 -20 असामाजिक तत्वों को उठाकर अंदर डाल देती तो अन्य लोगों की हिम्मत नहीं होती। उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करके पुलिस और प्रशासनिक अमले ने दलित परिवार के लोगों को ही डराया धमकाया गया और उनकी बारात घोड़ी पर नहीं निकलने दी गई । सरकार को ऐसे तमाम पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी कार्रवाई करनी चाहिए।

गहलोत जी ये क्या हो रहा है?

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भले ही चार दलितों और 5 आदिवासियों को अपने मंत्रिमंडल में जगह दे दी हो, लेकिन मुख्यमंत्री जी जब तक दलित समाज के लोगों की सामाजिक सुरक्षा ही नहीं होगी तो उन्हें आपके इस मंत्रिमंडल से कोई मतलब नहीं है । न कोई फायदा मिलने वाला है और ना ही आप की पार्टी को कोई से फायदा मिलने वाला है ,बल्कि लोगों में यह आक्रोश और बढ़ रहा है कि जब कांग्रेस सरकार में ही दलित वर्ग पर इस तरह के अत्याचार हो रहे हैं ,तो फिर दूसरी पार्टियों के राज में और कांग्रेस राज में फर्क ही क्या रह गया? आप की सरकार में भी लगातार आए दिन इस तरह की घटनाएं पढ़ने को मिल रही है। दलित समाज के लोगों के साथ इस तरह का अत्याचार बढ़ रहा है । अब तक 50 के करीब दूल्हों को घोड़ी से उतारने के मामले आ चुके हैं । दो दर्जन से ज्यादा युवाओं को मंदिर में दूसरे पर उनके साथ मारपीट के वीडियो वायरल हो चुके हैं। उनको पेशाब पिलाने उनके माथे में जूते रखने के मामले सामने आ चुके हैं । ऐसी घटनाओं के वीडियो सामने आते रहते हैं। महिलाओं और युवतियों के साथ बलात्कार की घटनाओं का आंकड़ा ही बहुत ज्यादा है। क्या आपको नहीं लगता है की अपराधियों के खिलाफ आपकी पुलिस कार्यवाही नहीं कर रही है । क्यों नहीं कानून का राज बुलंद हो पा रहा है! आखिरकार क्या कारण है कि आपकी पुलिस इतनी कमजोर साबित हो रही हैं ।

दलितों पर अत्याचार रोकने में पुलिस विफल

कमजोर वर्ग के लोगों को हर कदम पर परेशानी का सामना करना पड़ता है। पहले रोजी-रोटी के लिए संघर्ष ,फिर जीने के लिए संघर्ष, रहने के लिए संघर्ष और फिर सामाजिक ताने-बाने मैं अपने आप इज्जत आबरू बचाने के लिए संघर्ष । हर कदम पर संघर्ष कर रहे हैं कमजोर वर्ग के लोगों पर लगातार बढ़ते अत्याचार प्राचीन काल की याद दिलाते हैं । जब इस तरह की घटना सामने आती थी। लेकिन दलित आदिवासियों और कमजोर वर्ग के लोगों के साथ होगी अब आजादी के 74 साल बाद भी जब इस तरह की घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बनती है ,तो पढ़कर अफसोस होता है कि हम किस युग में जी रहे हैं ,और हमारी सरकार क्या कर रही है! क्या सरकार और पुलिस प्रशासन समाज के चंद असामाजिक तत्वों को सुधारने के लिए कड़े कदम नहीं उठा सकती है। जबकि समाज का कोई भी वर्ग, समझदार, सामाजिक प्राणी इस तरह का बर्ताव न तो खुद करता और न ही इस तरह की घटनाओं की पैरवी करता। तो फिर आखिर क्यों सरकार को ऐसे गिने-चुने असामाजिक तत्वों के खिलाफ कड़ा एक्शन लेने में डर है? क्यों नहीं कोई ऐसा कड़ा क़ानून बना दिया जाए कि इस तरह की हरकत करने पर उसको सीधा सजा का प्रावधान हो, जिससे कि कोई व्यक्ति इस तरह का कृत्य करने से पहले कई बार विचार करें!

सभ्य समाज की भी जिम्मेदारी

सरकार के साथ-साथ सभ्य समाज की जिम्मेदारी भी है कि वह कमजोर, गरीब, शोषित वर्ग के साथ नज़र आए। समाज में अनेक संगठन बने हुए हैं , जो आए दिन बड़े-बड़े दावे करते हैं उन संगठनों के अग्रणी नेताओं को भी आगे आकर इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने की पहल करनी चाहिए। बड़े भाइयों को भी बड़े भाई होने का एहसास कराना जरूरी होता है। यदि भीम आर्मी की तरह ही करणी सेना, तेजा सेना, मीन सेना, विप्र सेना, देव सेना, जैसी अऩेक सेनाएं बनी हुई जो कहीं न कहीं सामाजिक दृष्टि से अच्छे कार्यों से अलग पहचान रखती है। यदि इस तरह के सामाजिक संगठन भी आगे आकर इस तरह की घटनाओं की निंदा करे ,उन्हें रोकने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। क्योंकि अभी तक दलित समाज के लोगों का बना संगठन भीम आर्मी ही देशभर में इस तरह के मुद्दों का विरोध करता है। लेकिन यदि अन्य जातीय संगठन और इनके प्रमुख भी एक बार इस बात का ऐलान कर दे कि अब यदि प्रदेश में कहीं भी दलित शोषित वर्ग के लोगों पर इस तरह के अत्याचार होंगे तो वह असामाजिक तत्वों के खिलाफ सीधा एक्शन लेंगे तो शायद इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लग सकता है। कम से कम अग्रणी संगठनों के लोगों को भी इस तरह के अत्याचार रोकने के लिए, समझाइस के लिए भी आगे आना होगा। क्योंकि सरकार मशीनरी के साथ – साथ सामाजिक संगठनों को भी अपने अगड़े- अग्रणी होने का फर्ज निभाना होगा।

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