जालौर। खबर आहोर उपखंड क्षेत्र के नीलकंठ गांव से हैं ,जहां एक दलित नवविवाहित जोड़े को मंदिर में नारियल चढ़ाने और पूजा करने से रोक दिया गया । मंदिर के पुजारी वेला भारती ने कहा कि दलित समाज के लोगों को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है और वे मंदिर के बाहर खड़े होकर ही पूजा अर्चना कर सकते हैं । मंदिर के बाहर ही नारियल चढ़ा सकते है । स्थानीय निवासी तारा राम मेघवाल ने बताया कि उनके परिवार में शादी थी और शादी के बाद दूल्हा-दुल्हन मंदिर में धोक लगाकर, नारियल चढ़ाकर रवाना होते है। यह सालों से चलता आ रहा है जैसे ही हम लोग मंदिर पहुंचे, मंदिर के बाहर ही पुजरी वेला भारती ने हमें रोक दिया और कहा कि वे मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं । आपको पूजा करनी है तो मंदिर के बाहर ही पूजा कर सकते हैं । मंदिर के बाहर ही नारियल चढ़ा सकते है। इसका विरोध किया। इसके बावजूद मंदिर का पुजारी गाली गलौज करने लगा और किसी को भी मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया उसके बाद लोग मंदिर के बाहर से ही लौट गए। पीड़ित परिवार ने जालौर एसपी के पास पहुंच कर पूरे मामले की जानकारी दी और थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया। मुकदमा दर्ज करने के बाद मौके पर पहुंचे और जांच पड़ताल शुरू कर दी।

दलित समाज का सवाल?

दलित समाज हिन्दू देवी- देवताओं की पूजा करता रहा है ।लेकिन उन्हें शहरों के बड़े मंदिरों के अलावा गांव में बनें मंदिरों और ठाकुर जी के मंदिरों में आज भी प्रवेश नहीं मिलता है। कई गांव में दलित समाज के लोगों ने मंदिरों में जाना बंद कर दिया और अपने ही अलग से मंदिर बना लिए। कई गांव में बाबा रामदेव के मंदिर बने हुए हैं तो कई गांव में शिवालय बनाकर पूजा अर्चना करते हैं। तो कई गांव में बाबा साहब अंबेडकर प्रतिमा को ही सब कुछ माना जाता है ।इसका कारण है मंदिरों में उन्हें प्रवेश नहीं मिला तो उन्होंने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को ही अपना सब कुछ मानकर पूजा शुरू कर दी। लेकिन लोग इसका भी विरोध करते हैं ।हिंदू समाज के लोगों को यह भी कतई बर्दाश्त नहीं है दलित समाज के लोग डॉक्टर अंबेडकर की पूजा करें । भीमराव अंबेडकर जयंती पर निकाली जानी शोभायात्रा का विरोध करते है। कुछ लोगों को तो जय भीम का नारा भी सूल की तरह चुभता है। बाबा रामदेव की पूजा करें तो वो भी अखरता है। अब दलित समाज के लोगों का कहना है कि कुछ घटिया मानसिकता के लोग न तो उन्हें मंदिर में प्रवेश करने देते, और तो और उन्हें भीमराव अंबेडकर के नाम से भी नफरत है। आख़िर इस देश का दलित वर्ग क्या करे। आजादी के 74 साल बाद भी कुछ लोग दबे कुचले, दलित वर्ग के लोगों को जानवरों से बदतर स्थिति में ही देखना चाहते है लेकिन अब ऐसा संभव नहीं है क्योंकि अब लोग आर पार की लड़ाई के मूड में है। वे मरना पसन्द करते है लेकिन गुलामी करना नहीं। विरोधियों को भी अब संविधान को मानना ही होगा। संविधान सभी को बराबरी का दर्जा देता है। कोई किसी के साथ भेदभाव नहीं कर सकता है ।ऐसी स्थिति में राज्य सरकारों को और केंद्र सरकार को भी कठोर कानून बनाकर इस तरह की मानसिकता के लोगों को दंडित करना होगा कोई भी मानव मानव के प्रति भेदभाव नहीं कर सके ।

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