जयपुर। राजस्थान में पिछले लंबे समय से बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के नाम पर बेरोजगार आंदोलनकारियों का संगठनों खड़ा हो गया और इससे जुड़े हुए तथाकथित नेता आए दिन आंदोलन करते हैं और सरकार पर दबाव बनाते है। और जिस विभाग में उन्हें भर्तियां करानी होती है, उस विभाग में मनचाही शर्तों पर भर्तियां कराते है । ऐसा लंबे समय चल रहा है सरकार भी इन तथाकथित बेरोजगार नेताओं के दबाव में काम करती है और जैसा वह कहते हैं उन्हीं विभागों में भर्तियों निकालते हैं । भले ही वह आवश्यक हो या नहीं हो, भले ही वह योग्यता पूरी करते हो ,या नहीं करते हो और ऐसे में जो संबंधित विभाग में भर्तियों के लिए सालों से तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों को असफलता का सामना करना पड़ता है । देवकरण जाट ,मनिंदर सिंह शेखावत ,सोमनाथ शर्मा, मनीष शर्मा ,दिव्य राज बैरवा, नगेंद्र सिंह मीणा का आरोप है कि अभ्यर्थी सालों से तैयारियां करते हैं लेकिन इसका लाभ होने नहीं मिलता ।अलबत्ता तो भर्तियां निकलती ही नहीं है और निकलती है तो उसमें ऐसी कई शर्तें जोड़ दी जाती है जो अभ्यर्थी फुलफिल नहीं कर पाता है ।क्योंकि यह काम बेरोजगार संगठन के जुड़े हुए लोग करते हैं, वे चाहते हैं इसका फायदा किन लोगों को मिलेगा और मिलना चाहिए इसके लिए वे के सारी कवायद करते हैं । कोचिंग सेंटर से मोटा चंदा वसूलने का आरोप इन पर लगता रहता है अभ्यर्थियों और संविदा पर काम करने वाले लोगों से भी यह मासिक चंदा वसूलते हैं राजनीतिक पार्टियों से भी इनकी सांठगांठ होने के कारण इनके छोटे से आंदोलन को भी समर्थन मिल जाता है और इसका खामियाजा आम अभ्यर्थी को भुगतना पड़ता है । सरकार को चाहिए कि वह जिन जिन विभागों में रिक्त पर पड़े हैं उन पर भर्तियां करें और नियमानुसार भर्तियां निकाले लेकिन सरकारी भी सिर्फ दबाव में काम करती है जिससे इन बेरोजगार छात्र नेताओं की चांदी हो रही है और बेरोजगार अभ्यर्थी उनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है ।

बेरोजगार संगठनों का खौफ इतना है कि अधिकारियों से लेकर विभाग के मंत्री और विपक्ष के नेताओं के साथ-साथ मुख्यमंत्री खुद भी दबाव में आ जाते हैं और उनके अनुसार ही निर्णय करते हैं यह सरासर गलत है । इस काम में कई प्रोफेशनल आंदोलनकारी है। आज इसे धंधा बना लिया है लाखों की भर्तियां हो चुकी है लेकिन इनकी नेतागिरी बंद नहीं हुई है और इनकी नेतागिरी की आड़ में सरकार भी खूब ब्लैकमेल हो रही है । जिन विभागों में भर्तियां होनी चाहिए थी सरकार का ध्यान उन विभागों से हट गया है ,जिन विभागों में यह तथाकथित नेता चाहते हैं उन्हीं विभागों में भर्तियां निकलती है और भर्तियों के नियम कायदे और शर्ते भी यह तथाकथित बेरोजगार नेता ही तय करते हैं। ऐसे में जो असल अभ्यर्थी हैं उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाता क्योंकि हर भर्ती में यह तथाकथित नेता अपनी मनमर्जी की शर्तें जुड़वाते हैं।

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