करौली । हिंडौन सिटी थाना क्षेत्र की एक दुष्कर्म पीड़िता युवती ने कोर्ट के मजिस्ट्रेट के खिलाफ हिंडौन सिटी कोतवाली थाने में मुकदमा दर्ज कराया है । पीड़िता ने आरोप लगाया कि पुरुष मजिस्ट्रेट ने मुझसे कहा कि कपड़े खोलकर चोटे दिखाने को कहा। हिंडौन सिटी में पीड़िता को मजिस्ट्रेट द्वारा 164 के बयान के दौरान कपड़े उतारने की बात कहने के मामले में जांच शुरू हो गई है। पीड़िता ने हिंडौन पुलिस उपाध्यक्ष कार्यालय में FI Rभी दर्ज कराई थी। मजिस्ट्रेट ने उससे कहा था कि पंजाबी कुर्ती उतार मुझे चोटे देखनी है, पीड़िता ने पुलिस को जो बयान दिए इसके बाद बवाल मचा हुआ है और इस मामले में लोगों की अलग-अलग राय सामने आ रही है। लेकिन अधिकांश लोग मजिस्ट्रेट की इस बेतुका मांग को शर्मनाक बताते हुए मजिस्ट्रेट के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं । इस मामले में सूत्रों से जानकारी मिली है कि पीड़िता ने अपने 3 कजिन भाइयों के खिलाफ गैंगरेप( दुष्कर्म) का न्यायालय में इस्तगासे के माध्यम से मामला दर्ज कराया था । जांच हिंडौन सिटी पुलिस उपाधीक्षक के पास थी । पुलिस ने मजिस्ट्रेट के पास शाम के समय मामले में बयान कराए । बयान के दौरान मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारी की किसी बात को लेकर तनातनी और बहस हो गई। बताया जा रहा है कि बहस के दौरान पुलिस अधिकारी की बात नहीं मानने पर पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट एक दूसरे को देखने की बात कही। मजिस्ट्रेट ने पुलिस अधिकारी की अनुचित मांग नहीं मानी इसको लेकर उन्होंने यह पूरा षड्यंत्र रचा। बताया जा रहा है कि पुलिस अधिकारी ने मजिस्ट्रेट को सबक सिखाने के लिए लड़की को मजिस्ट्रेट के खिलाफ बयान देने के लिए तैयार किया और लड़की के बयानों के आधार पर ही दबाव डालकर मजिस्ट्रेट के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया ,जबकि विधिवेताओं का कहना है कि किसी भी कार्यरत मजिस्ट्रेट के खिलाफ कोई भी मुकदमा तब तक दर्ज नहीं हो जाता जब तक की सुप्रीम कोर्ट की अनुमति नहीं हो। कोर्ट की कमेटी बयानों के आधार पर जांच करती है और जांच के बाद यदि मजिस्ट्रेट दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर विधिवत रूप से कार्यवाही की जाती है जबकि यहां तो सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना ही सिर्फ पुलिस के दबाव से मजिस्ट्रेट के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हो गया ।कार्यरत मजिस्ट्रेट पर लगे आरोपों की जांच भी कोर्ट ही करता है। हालांकि अभी तक इस मामले में मजिस्ट्रेट ने किसी तरह का कोई बयान नहीं दिया है। लेकिन जिस तरह से पूरे मामले को तुल दिया गया है उससे इसमें झोल साफ नजर आ रहा है। लेकिन यदि मजिस्ट्रेट की कुर्सी पर बैठा हुआ व्यक्ति किसी पीड़ित महिला या यूवती से अपने कक्ष में कपड़े उतार कर चोट दिखाने की बात कहे तो इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट को तत्काल रूप से बर्खास्त करके कार्रवाई और जांच शुरू करने चाहिए। पीड़िता को न्याय मिले यह सुनिश्चित हो लेकिन कहीं पीड़िता पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट के आपसी अहंकार का शिकार होकर युवती मजिस्ट्रेट की इज्जत की तार तार हो , यह भी ठीक नहीं है। निर्दोष को सजा मिले यह भी ठीक नहीं होगा। फिलहाल इस मामले में कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुसार उचित कार्यवाही की जानी चाहिए और मामले की निष्पक्ष जांच हो, जो भी दोषी हो उसे सजा जरूर मिले। जिससे न्यायपालिका में बैठे इस तरह के लोगों को सजा जरूर मिले और वह बेनकाब जरूर होने चाहिए, लेकिन यदि किसी पुलिस अधिकारी ने सिर्फ अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए यह पूरा षड्यंत्र रचा हो तो उसके खिलाफ भी एक्शन होना चाहिए। इस तरह की बातें भी लगातार सामने आ रही है हालांकि हकीकत बात तो पीड़िता ही बता सकती है कि उसके साथ क्या घटना घटित हुई है। फिलहाल तो पीड़िता के दिए गए एक समाचार पत्र के बयान के आधार पर मजिस्ट्रेट के खिलाफ लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है और लोग चाहते हैं कि उन्हें तुरंत बर्दाश्त किया जाना चाहिए । हाईकोर्ट की कमेटी का गठन कर पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। जिससे उसे पूरे मामले का फाटक क्षेत्र हो सके फटाक से पर्दाफाश हो सके

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