गहलोत – पायलट में सुलह जरुरी
सीपी- वसुंधरा और अन्य नेताओं का साथ जरुरी
दूर करने होंगे मतभेद
जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनावों की सुगबुगहट शुरु हो चुकी है। भाजपा और कांग्रेस के साथ- साथ बीएसपी आम आदमी पार्टी और आरएलपी भी मैदान तलाश रही है। भाजपा इस मामले में अपना स्वाभाविक अधिकार मानकर चल रही है। वहीं कांग्रेस पार्टी राजस्थान सरकार के लोक कल्याणकारी कार्यों के दम पर फिर से सत्ता में आने का सपना देख रही है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा में जिस तरह से मुख्यमंत्री पद को लेकर नेताओं में गलाकाट प्रतियोगिता चल रही है। इसके बीच कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। लेकिन फिर भी यदि पार्टी मौजूदा विधायकों के या पूर्व में विधायकों को 70 फीसदी टिकट काट देती है तो भाजपा सत्ता की ओर अग्रसर हो सकती है। इसके साथ ही भाजपा या तो पूरी तरह से मोदी के फेस पर चुनाव लड़े या फिर वसुंधरा राजे और सीपी जोशी , सतीश पूनियां, राजेंद्र राठौड़, गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच का रास्ता निकालते हुए चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ा जाए। लेकिन ऐसी स्थिति में भाजपा को मौजूदा विधायकों के 70 फीसदी टिकट काटन होंगे। ये ही नहीं पूर्व में जो नेता दो बार चुनाव हार चुके उनके टिकट काटकर उनके स्थान पर नए चेहरों को अवसर देना होगा। नहीं तो भाजपा की राह भी आसान नहीं होगी।
कांग्रेस पार्टी में गहलोत – पायलट के बीच सुलह जरूरी
राजस्थान में मौजूदा सरकार के काम काज को सभी सराहना कर रहे है। लेकिन लोगों का कहना है कि कांग्रेस फीसदी भी सत्तर फीसदी विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटने होंगैं। इसके साथ ही गहलोत और पायलट खेमें की गुटबाजी दूर करनी होगी। जब तक पायलट को साधा नहीं जाएगा राजस्थान में सरकार वापसी की सोच भी नहीं सकते। हालांकि लोगों को कहना है कि यदि विधायकों के टिकट काट दिए गए नए चेहरों को मौका दे दिया गया तो कांग्रेस लड़ाई में शामिल हो जाएगी। कांटे की लड़ाई में शामिल हो जाएगी। यदि गहलोत और पायलट के बीच सुलह हो जाती है और मौजूदा विधायक . मंत्रियों के टिकट काट दिए जाते हैं। नए चेहरों को मौका दिया जाता है तो कांग्रेस फिर से सत्ता में आ सकती है। इसके लिए कांग्रेस को पूरी ताकत से जुटना होगा। राज्य सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी लोगों तक पहुंचानी होगी।