जनानी ड्योडी की परदानशीन महिलाओं को हवामहल तक आने जाने के लिए गुप्त मार्ग बनाया गया था। महाराजा भी महारानियों के संग सिटी पैलेस से इस गुप्त रास्ते से हवा महल तक आते । पुराने समय में इस गुप्त रास्ते को जनाना महल की सुरंग कहते थे। महल से भी पूर्व की तरफ एक भूमिगत गुप्त सुरंग है। इसके आगे दीवार लगा कर ताला बंद कर रखा है। महल की करीब साढ़े तीन सौ खिड़कियों पर पीतल की घंटियां भी लटकाई गई थी। हवा में यह घंटियां आपस में टकराती तब सारे महल में मधुर ध्वनि सुनाई देती।
65 घटिया से निकलती थी मधुर ध्वनि
365 घंटिया से निकलती थी मधुर ध्वनि
इतिहासकार सवाई सिंह धमोरा ने अपने लेख में घंटियों का उल्लेख किया है। जयपुर फाउंडेशन के सिया शरण लश्करी के मुताबिक बरसों पहले उन्होंने कुछ घंटियां देखी थी। बाद में यह घंटियां गायब होती चली गई।
सरकारी दस्तावेज में हवा महल में 365 खिड़कियां है। वैसे खिड़कियों सहित करीब नौ सौ जाली झरोखे हैं।
किरकिरा खाने के भंडारों में सोने चांदी के मूल्यवान वस्तुएं
कभी नीचे की मंजिल में महकमा किरकिरा खाने के भंडारों में सोने चांदी के मूल्यवान ऊनी व दूसरे वस्त्र भी रखे जाते।
रिकार्ड में किसी अमराराम के मार्फत कोठ्यार से कीमती सामान देने का भी उल्लेख है। महल निर्माण के लिए
सम्वत 1835 में सावण सुदी एकम को हाकिम रोडाराम ने संग्राम सिंह रतलाम को भांकरी की चार व तीन गज की 160 पट्टियां भेजने का फरमान भेजा ।
सन 1798 के दस्तावेज में महल निर्माण के बाद इमारत महकमा के सेठ गोवर्धन दास, कवि राम नारायण, छाजू उस्ता, रामलाल उस्ता नानूराम, मोहन राम मोसिल, रेखा खाती, जीतमल खत्री, लालाराम धाभाई, मोहन दरजी, बिरज लाल बंगाली , पूरा मीणा आदि को साफे भेंट कर सम्मान करने का उल्लेख है। शोध सुधा निधि ग्रंथ में लिखा है कि सवाई प्रताप सिंह की इच्छा थी कि हवा महल इंद्र की इंद्रपुरी से भीअच्छा बनें।
प्रताप सिंह को विश्वास था कि इष्टदेव राधा कृष्ण का इस महल में पदार्पण होगा और
वे दर्शन देकर कृतार्थ करेंगे।
कभी राजसी मेहमानों को हवा महल में ठहराया जाता था। सवाई राम सिंह की मृत्यु के बाद सेठ नथमल की देखरेख में बड़ा ब्रह्म भोज हवा महल में तैयार हुआ था।
कृष्ण भक्त सवाई प्रताप सिंह ने ब्रज निधि मुक्तावली आदि ग्रंथों की रचना महल में बैठकर की थी। पांच मंजिला और 87 फीट ऊंची इमारत की खुली चांदनी में दीदार बक्ष आदि नृत्यांगनाओं की संगीत महफिल सजती थी।