फाइल फोटो

आईएएस से लेकर चपरासी तक जा जाजम पर एक

ना बैंड ,ना बजा ,ना डीजे का शोर ,ना घोड़ी बघ्घी, नंगे पैर बारात लेकर निकले दूल्हे

रहते देश-विदेश में लेकिन शादी अपने देश

बीकानेर। इसे कहते हैं जड़ों से जुड़ाव और अपनी संस्कृति को जिंदा रखने की अनुमति पल जी हां आधुनिक युग में समाज बनाई कोई सा भी हो लेकिन सब पर आधुनिकता का रंग चढ़ रहा है जरूरी भी है लेकिन इस आधुनिकता के बीच में लोग अपनी संस्कृति को नहीं भूले और अपने जड़ों को जिंदा रखें यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। हम बात कर रहे हैं देश और दुनिया में हर छोटे बड़े पद पर काम करने वाले खुश करना ब्राह्मण समाज के लोगों की जो भले ही रहते देश के किसी भी कोने में हूं लेकिन जब शादी ब्याह का मामला आता है तो वह अपने खुद के बीकानेर या जोधपुर में ही करते हैं। सबसे खास बातें की शादी ब्याह में मित्रता और फिजूल खर्ची बिल्कुल नहीं की जाती है दहेज लेने देने का तो नामोनिशान ही नहीं है आदमी भले ही किसी भी बड़े पौधे पर क्यों नहीं पहुंच गया हो लेकिन पुष्करणा ब्राह्मण समाज में दहेज लेना देना का रिवाज नहीं है अपनी माटी से और संस्कृति से जुड़ाव रखने के चलते ही कुछ करना समाज के देश-विदेश के किसी भी कोने में रहने वाले लोग शादी विवाह अपने शहर बीकानेर में ही करते हैं। बीकानेर में करीब ढाई सौ से अधिक जोड़े परिणय सूत्र में बंधे। शादी समारोह में शामिल होने वाले परिवारों के साथ दुनिया भर के पर्यटक भी इस विवाह समारोह के साक्षी बने। दोनों का सम्मान और स्वागत पुष्प वर्षा से किया गया।

मितव्यता और सादगी इस पुष्करणा ब्राह्मण समाज की इस कार्यक्रम की बात हम इसलिए कर रहे हैं । क्योंकि इसमें लड़की वाला या लड़के वाला भले कितने ही पैसे वाला हो कितने ही बड़ी पावरफुल पोस्ट पर हो सभी ने मितव्यता और सादगी की मिसाल कायम की। विवाह में किसी तरह की फिजूल खर्ची नहीं की गई बारात में ना तो बैंड बाजा बाजा और नहीं रत घोड़ी पालकी आई धूल पैदल पैदल ही नंगे पैर दुल्हनों के मंडप पहुंचे जिनके साक्षी बने उनके माता-पिता परिजन रिश्तेदार और समाज के लोग।

संस्कृति को जिंदा रखना

पुष्करणा ब्राह्मण समाज का इस तरह का आयोजन अपनी संस्कृति को जिंदा रखना दी है सालों से चल हर आ रहे बेवफाई कार्यक्रमों में अपने गीत गाल रीति रिवाज संस्कृति को जिंदा रखकर अपने पीढ़ी में हस्तांतरित किया जा रहा है जिससे आने वाली पीढ़ी भी समाज की प्राचीन कालीन परंपराओं का निर्भर कर सके और उसे करना ब्राह्मण समाज की संस्कृति को अक्षर बनाए रखें जिस तरह की आधुनिक आधुनिकता का फूट आया है इस तरह के गाने गीत इस समय चल रहे हैं उन सब से दूर रहकर शादी समारोह में सिर्फ पारंपरिक रूप से गए जाने वाले वैवाहिक गीत ही गए जाते हैं।

सामाजिक एकता और समरसता

समाज चाहे कोई सा भी हो, किसी भी समाज में या परिवार में कोई भी व्यक्ति समान नहीं हो सकता है। आर्थिक रूप से समानता और विपन्नता अलग-अलग परिवार की पहचान है। यही कारण है कि लोग भले कितने भी पैसे वाले हो ,कितने ही बड़े घर के होंगे ,कितने ही बड़े पद और ओहदे पर काम करते हो ,लेकिन वह विवाह अपने सामाजिक रीति रिवाज से बगैर किसी दहेज के करते हैं । इस तरह सामूहिक विवाह करते हैं ,जिसमें 250- 500 जोड़े तक एक साथ विवाह बंधन में बंधते हैं । एक पक्ष पर ₹25000 से ज्यादा का खर्चा नहीं आता ।इसमें किसी भी तरह की फिजूल खर्ची नहीं की जाती है ।इसका मकसद गरीब हो, अमीर हो या किसी भी स्थिति में हो ,सबको साथ लेकर चलना ही है। इससे सामाजिक समरसता और सामूहिक एकता का भी संदेश जाता है । पुष्करणा ब्राह्मण समाज का यह मैसेज दूसरे समाजों को भी प्रेरित करता है कि जिस तरह से वह आधुनिकता की दौड़ में अपनी पारंपरिक चीजों को भूल रहे हैं और दहेज की दौड़ में बच्चियों बूढी हो रही है। शादियां नहीं हो पा रही है या मां-बाप कर्ज के तले दबकर आत्महत्या करने को मजबूर है ।उन लोगों को भी इस तरह के विवाह कार्यक्रमों से सबक लेने की जरूरत है कि समाज में सामूहिक विवाह करने से इस तरह की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है । पुष्करणा समाज के वरिष्ठजनों का कहना है कि इस तरह की कार्यक्रमों से समाज की एकता भी बनी रहती है। समाज में भले ही कोई किसी भी बड़े या ऊंचे पद पर हो ,भले कोई कोई कितने भी पैसे वाला हो,सबको सामाजिक कार्यक्रम, विवाह जैसे संस्कार, अपने समाज के बीच करने का अवसर मिलता है।

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