जयपुर। चने का घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 5440 रुपए है। चना अप्रैल से आना शुरू हो गया था। उस समय तो चने के भाव 5200 रुपए प्रति क्विंटल थे। एक माह की अवधि में बढ़कर 5800 रुपए प्रति क्विंटल से अधिक हो गए, जिससे किसानों को अनेक वर्षों के बाद इस वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक दाम प्राप्त होने का अवसर आया। सरकार ने चने के आयात शुल्क को घटाकर शून्य तक लाकर किसानों को चने के उचित मूल्य से भी वंचित करने का काम कर दिया है। यह भी उस समय जब किसान के घर में चने की पैदावार आना शुरू हुई है। यही कदम 6 महीने बाद उठाया जाता तो किसानों को उचित मूल्य प्राप्त होने से वंचित नहीं रहना पड़ता ।

किंतु सरकारों का रवैया किसान विरोधी होने के कारण किसानों के हितों के विरुद्ध आयात – निर्यात नीति का निर्धारण किया जाना सरकारों के स्वभाव में है। शुक्रवार की रात चना को आयात शुल्क मुक्त करने का प्रभाव शनिवार से आना आरंभ हो गया । इस विपणन मौसम में संभावित उत्पादित चने की मात्रा 121.61 लाख टन है। जिसे पिछले वर्ष की तुलना में 100.06 लाख टन कम बात कर सरकार ने यह अन्याय किया है।
दाल उपभोक्ताओं को सरकार द्वारा ₹60 प्रति किलो वितरित की जा रही है । अभी भी घाटे का काम नहीं है क्योंकि दाल बनाने के लिए एक चने के दो टुकड़े कर छिलका ही हटाना पड़ता है। इसमें से किसी भी प्रकार की क्षति नहीं होती छिलका का उपयोग आटा में मिलने तथा पशु आहार के लिए होता है। यदि दो से अधिक टुकड़े हो जाए तो वह बेसन बनाने के काम आ जाते हैं। इस प्रकार 1 किलो चने की दाल बनाने पर अधिकतम खर्चा एक रुपए का आता है । फिर उपभोक्ताओं को सस्ती दाल देने के लिए सरकार सक्षम है आश्चर्य है कि जब चना बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर किसानों को बेचना पड़ता है तब सरकार किसानों के हितों के संरक्षण के लिए तैयार नहीं होती है । इसीलिए चना उत्पादक प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान के किसानों को सर्वाधिक घाटा उठाना पड़ता है। इसके लिए राजस्थान के किसानों ने तो सैंकड़ों की संख्या में चने से भरे हुए ट्रैक्टरों को महीना तक सड़कों पर खड़ा रखकर आंदोलन किया तो भी सरकार का हृदय पसीजा नहीं था। सरकार किसानों को अपनी उपज को घाटे में बेचने के लिए विवश करती रहती है। जबकि संसद में वह किसी भी किसान को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर अपनी उपज बेचने के लिए विवश नहीं होने देने का वचन देती है। सरकार की कथनी और करनी में अंतर के कारण कटे पर नमक छिड़कने के समान किसानों को दर्द होता है। अच्छा यह हो सरकार आयात शुल्क मुक्त करने के आदेश को तत्काल वापस ले अन्यथा किसानों का विरोध सहने के लिए तैयार रहे।

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