जयपुर। राज्यसभा की चुनावी चौसर में उतरे मीडीया घराने के प्रमुख सुभाष चंद्रा राजनीति के भंवर में फंसते नजर आ रहे है। भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी समर में उन्हें उतार तो दिया। लेकिन बहुमत का जुगाड़ होता नजर नहीं आ रहा। सुभाष चंद्रा को भाजपा के तीस वोट एक तरफा मिलने जा रहे है। लेकिन अभी तक आरएलपी ने अपने पत्ते नहीं खोले है। अन्य दूसरे विधायक भी चुप्पी साधे है। कांग्रेस अपने विधायकों को प्रशिक्षण शिविर के बहाने बाड़ेबंदी करने की तैयारी में है। ऐसे में सुभाष चंद्रा के पास राजस्थान में करने को कुछ नहीं है। भले ही वे अपने खजाने का मूंह खोल दे लेकिन राजस्थान में जिस तरह से स्वाभिमानी लोग है वे पैसों के दम पर बिक जाए लगता नहीं है। हालांकि सुभाष चंद्रा भले ही राजनीतिज्ञ नहीं रहे हों लेकिन वर्षों से टीवी चैनल के माध्यम से राजनीतिज्ञों से उनके संपर्क जरुर रहे है। इसलिए वे हर तरह की तिकड़ बैठाने का प्रयास जरुर कर रहे है।

बीजेपी विधायकों को तिवाड़ी की नहीं चंद्रा की चिंता

बताया जा रहा है कि बीजेपी विधायकों को घनश्याम तिवाड़ी की नहीं सुभाष चंद्रा की चिंता है। बीजेपी के 41 वोट जो तिवाड़ी को मिलने है उनका क्रम लगभग तय है। बीजेपी में कौन- कौन लोग तिवाड़ी को वोट देंगे और कौन -कौन लोग है जो सुभाष चंद्रा को वोट देंगे। इसके साथ ही बीजेपी विधायकों ने निर्दलीयों को भी टटोलने लगा दिया है।

पत्रकारों की फौज भी लगी विधायकों का मन टटोलने में

अपने मालिक की जीत के लिए पत्रकारों की टीम भी लगी हुई है। पत्रकारों के पास पल – पल की रिपोर्ट रहती है। ऐसे में पत्रकार अपने मालिक की जीत के लिए विधायकों से वर्षों पुराने संबंधों की दुआई दे रहे है। लेकिन विधायकों के लिए पार्टी से बढ़कर कुछ नहीं है। निर्दलीय विधायक भी जानते है कि न तो पैसा मांग सकते और खुलकर सामने आ सकते है। पत्रकारों से व्यवहार अपनी जगह वोट अपनी जगह। हालांकि सुभाष चंद्रा ने भी जयपुर से लेकर दिल्ली तक की अपनी पूरी ताकत लगा दी है। बीेजेपी ने भी इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। हालांकि सुभाष चंद्रा के पास खोने को कुछ नहीं है। क्योंकि वे तो यहां खाली हाथ आए है। बीजेपी विधायकों ने उनके प्रस्तावक और समर्थक बनकर नामांकन कराया है अब जिम्मेदारी भी उनकी ही है।

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