पुष्कर। गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की अस्थि विसर्जन यात्रा के समापन पर आयोजित सभा को संबोधित करने के दौरान युवा खेल मंत्री अशोक चांदना को भी भारी विरोध का सामना करना पड़ा । जैसे ही अशोक चांदना मंच से बोलना शुरू हुए लोगों ने हाथ खड़े कर के नारेबाजी कर ,उनका विरोध करना शुरू कर दिया। लोगों के विरोध के बीच भी अशोक चांदना का बोलना जारी रहा । लेकिन युवाओं का विरोध रुका नहीं। इस दौरान अशोक चांदना ने कहा कि मुझे ऐसा भरोसा तो नहीं था कि मेरे साथ ऐसा होगा। मुझे अपने ही लोगों के विरोध का सामना करना पड़ेगा। मैं डरने वाला नहीं हूं और अपनी बात जारी रखें। इसके बाद भी जब लोगों के विरोध में कोई कमी नहीं आई और लोगों ने नारेबाजी के साथ साथ जूते फेंकने शुरू कर दिए। तब अशोक चांदना ने मंच से कहा “तुम्हारे जैसे बहुत देखे मैंने ” चांदना के इस बयान के बाद कुछ लोगों का विरोध बहुत सारे लोगों का विरोध बन गया और फिर लोगों ने जमकर नारेबाजी की। सचिन पायलट जिंदाबाद के नारे लगाए ,चांदना मुर्दाबाद के नारे लगाए । हवा में जूते उछाले, काले कपड़े लहराए। भीड़ के गुस्सा और आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने उन्हें को बचाकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की कार से ले जाना पड़ा।

तुम्हारे जैसे बहुत देखे मैंने

मंत्री अशोक चांदना का यह बयान उनके ज्यादा विरोध का और कारण बन गया । हालांकि लोग उनके खड़े होने के साथ ही विरोध कर रहे थे ।इससे पूर्व उद्योग मंत्री शकुंतला रावत के बोलने का भी लोगों ने विरोध किया था। उन्होंने भी लोगों के विरोध के बीच ही अपना संक्षिप्त भाषण दिया था ।अशोक चांदना युवा है उन्होंने विरोध को दरकिनार करते हुए अपना भाषण जारी रखा और जब विरोध थमने का नाम नहीं लिया, तब उन्होंने मंच से ही कह दिया तुम्हारे जैसे बहुत देखे मैंने। इस बयान ने आग में घी का काम कर दिया और उसके बाद फिर उन पर जमकर भीड़ ने जूते फेंके यह तो शुक्र है कि कोई भी जूता उनके मंच तक नहीं पहुंचा और फिर पुलिस को उन्हें बचा कर सुरक्षित निकालना पड़ा।

वैभव गहलोत, रावत और धर्मेंद्र राठौड़ की कार पर फैकी मिट्टी

दरअसल कुछ लोग इस विरोध को सरकार की ओर से पूर्व निर्धारित विरोध करार दे रहे हैं, लेकिन भाजपा नेताओं से सजे इस मंच पर कांग्रेस के सभी नेताओं को विरोध का सामना करना पड़ा । गुर्जर आरक्षण आंदोलन में 72 गुर्जरों की हत्या के आरोपों को झेल रहे पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के नेताओं के भाषणों पर जमकर तालियां मिली । यह समझ से परे है । जिस की मुख्यमंत्री के कार्यकाल में गुर्जर समाज के आंदोलन में एक बार भी लाठीचार्ज तक नहीं हुआ सबसे ज्यादा बजट मिला और सबसे ज्यादा एमबी की समाज के लोगों को नौकरियां मिली उसी की सरकार के लोगों को सबसे ज्यादा विरोध का सामना करना पड़े तो फिर यह कहीं न कहीं साजिश ही नजर आती है। भले ही उनमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे और आरसीए के अध्यक्ष वैभव गहलोत, धर्मेंद्र राठौड़ हो, शकुंतला रावत हो या कोई अन्य नेता यहां लोगों ने सभी कांग्रेसी नेताओं का विरोध किया । पुलिस अधीक्षक चुनाराम जाट ने लोगों के विरोध को भांपते हुए जब वैभव गहलोत, धर्मेंद्र राठौड़ ,शकुंतला रावत को निकालने का प्रयास किया तब भी लोगों की भीड़ ने उनकी कारों को धूल के गुबार से पाट दिया। शुक्र है पुलिस ने किसी तरह का लाठी चार्ज नहीं किया, वरना माहौल खराब हो सकता था। इसमें पुलिस प्रशासन की धैर्य की सोच भी कहीं न कहीं अच्छी कही जा सकती है ।

सचिन पायलट का नाम घसीटना गलत

कुछ लोग कह रहे हैं कि यह सरकार ने उनको ऐसा करने की छूट दी। लेकिन यदि सरकार ने छूट दी तो फिर सरकार के मुखिया के बेटे उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों इतना विरोध का सामना करना क्यों पड़ा इसका किसी के पास जवाब नहीं है। विरोध पूर्व निर्धारित था और सोची समझी साजिश का हिस्सा था ऐसा भी नहीं कहा जा सकता सचिन पायलट मौके पर मौजूद नहीं थे और वह इस तरह की घटिया हरकत भी नहीं करा सकते। यह तो लोगों का स्वाभाविक विरोध हो सकता है, जो सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाने के कारण लोगों में पनप रहा है। पुलिस ने लाठी चार्ज नहीं कर के बहुत बड़े घटनाक्रम को रोक लिया। वरना उग्र भीड़ पर पुलिस का लाठीचार्ज किसी भी तरह का कोई कदम भारी जनहानि भी कर सकता था ।इसलिए पुलिस और प्रशासन इस मामले में कहीं न कहीं साधुवाद का पात्र है।

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