जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की फटकार के दूसरे दिन ही चिकित्सा विभाग के प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया को सार्वजनिक निर्माण विभाग का मुखिया बना दिया गया ।लेकिन इसके साथ ही अधिकारियों में आम जनता में चर्चा इस बात की है कि क्या चिकित्सा विभाग के प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया के तबादले से अस्पताल में अस्पतालों में बढ़ रही है अव्यवस्था सुधर जाएगी । लोगों का कहना है कि एक सीनियर आईएएस अफसर सरकार के आदेशों को नीचे तक पहुंचाता है । आदेश की पालना करना,कराना भी इसकी जिम्मेदारी होती है । लेकिन जिन अस्पतालों में यह व्यवस्था देखने के लोग लाखों रुपए वेतन उठा रहे हैं। यह आज उन पर भी गिरने चाहिए थी।

जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत s.m.s. अस्पताल में भर्ती रहे और नजदीक से सारी अवस्थाएं देखी इसके बावजूद उन्होंने कठोर कार्रवाई करने की बजाय अपनी कमजोरी से दिखा रहे हैं। जबकि वह राज्य के मुखिया है। मुख्यमंत्री हैं सभी पावर उनमें ही निहित है भले ही विभाग किसी के पास भी हो, इसके बावजूद वे सिर्फ यह कहकर बच नहीं सकते कि फला विभाग में ऐसा है। ऐसा नहीं हो रहा है, यह दुरुस्त करने और ठीक करने का जिम्मा भी आप ही का काम है श्रीमान जी। जनता ने आपको अवसर दिया है, आप अपने पावर का सदुपयोग करें । एहसास कराएं कि किस तरह से काम होता है । जब तक आप ऐसे भ्रष्टाचारियों को बाहर का रास्ता नहीं दिखाएंगे। जिस तरह 2 दिन पहले ही आपने बयान दिया निजी अस्पताल वालों की लूट को लेकर और यह सही बात है, लेकिन जब तक आप निजी अस्पतालों की लूट पर नकेल नहीं कसेंगे तब तक यह खाएंगे भी और न केवल जनता पर आप पर भी गुराएंगे । जितना पैसा आपने इन निजी अस्पतालों में चिरंजीवी योजना में इलाज के नाम पर बांट दिया, उतना ही पैसा यदि आप सरकारी अस्पतालों की दशा सुधारने पर लगात तो आपको इस तरह बयान देने की जरूरत नहीं पड़ती। प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलता और अस्पतालों की दशा सुधरती। लोगों को इलाज मिलता, निजी अस्पतालों की दादागिरी भी नहीं होती। क्योंकि अब तो है उन्होंने अपना – धंधा बना लिया है। निजी अस्पताल संचालक गांव में छोटे-छोटे क्लीनिक कुछ झोलाछाप डॉक्टरों से भी से अपनी सांठगांठ रखते हैं । उन्होंने गांव में तहसील स्तर पर एजेंट्स बनाकर रखे हुए हैं जो मामूली सी बीमारी होने पर भी उन्हें निजी अस्पतालों में जहां उनका चिरंजीवी योजना के नाम पर निशुल्क दवा के नाम पर दिया जाता है रेफर करते हैं। मामूली सीना दर्द होने पर उनके स्टंट/ वोल्व बदल जाते हैं। अभी हाल ही में भरतपुर में आरजीएचएस योजना के तहत पेंशनर्स और निजी अस्पतालों के लूट का खुलासा हुआ है। जिसमें अस्पताल संचालक ₹800 की गोली के ही ₹300000 वसूलने की बात सामने आ रही है। एक ही मरीज को 1 दिन में 10000 गोलियां लिखना और देना और 90 गुना ज्यादा पैसा वसूल ना यह सब ऑडिट में पकड़ा गया है । यह तमाम बातें बगैर अधिकारियों के कर्मचारियों की आपसी सांठगांठ के नहीं होती क्या इस तरह की लूटपाट को रोका जाना सरकार का दायित्व नहीं है।

लोगों का कहना है कि वैभव गालरिया चिकित्सा विभाग में कार्य कर रहे थे s.m.s. अस्पताल में अलग-अलग डिपार्टमेंट बने हुए हैं, सफाई का काम भी कई लोगों को दिया हुआ है। अस्पताल के मेंटेनेंस का काम भी कई लोगों को दिया हुआ है । लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार s.m.s. अधीक्षक को रहता है और ना डॉक्टर को आखिरकार कार्यवाही कौन करें, जब कमीशन में सबकी बंदरबांट तय हो , ठोस कार्यवाही कौन और क्यों करेगा ऐसे में ऐसे लोगों के खिलाफ भी एक्शन होना जरूरी है । सफाई व्यवस्था में मॉनिटरिंग की जरूरत होती है। अस्पताल में सफाई करने वाले और मॉनिटरिंग करने वालों की भी जिम्मेदारी तय है इसके बावजूद उनके खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही नहीं होती वह बच जाते हैं जबकि कार्यवाही संबंधित फार्म पर और मॉनिटरिंग करने वालों पर होनी चाहिए जब तक इनके खिलाफ करेक्शन नहीं होगा तब तक इसमें सुधार होने की संभावना बहुत कम है। प्रदेश के अधिकांश अस्पतालों में सब काम ठेके पर दिया हुआ है ठेके पर जिन सफाई कर्मियों वेतन 600 से 800 उठाया जाता है, वही काम ठेका कर्मियों से ₹300 या ढाई ₹250 परडे में कराया जाता है। यानी कि शोषण वहां भी आम आदमी का हो रहा है । लेकिन लोगों को अपना गुजारा चलाना है, परिवार चलाना है और ऊपर की कमाई भी शुरू हो जाती है। ऐसे में वे लोग संविदा पर भी काम करने को तैयार रहते हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इन सब कार्यों में स्थानीय अस्पताल प्रशासन, उनके अधीक्षक और ऑडिट से जुड़े हुए लोग प्रशासनिक अधिकारी यह सब लोगों का कमीशन खेल होता है । यह कमीशन के चक्कर में तमाम तरह के फर्जी बिल भी पास कर देते हैं । व्यवस्था जस की तस है ।अस्पतालों में करोड़ों के उपकरण लग जाते हैं ,कई बार तो स्टाफ की कमी के चलते वे करोड़ों के उपकरण भी खराब हो जाते हैं । लेकिन वह कभी काम ही नहीं आते, ऐसी स्थिति में जो जिम्मेदार है उन पर एक्शन होना चाहिए । जब तक चिकित्सा विभाग के अधिकारी ,अस्पताल अधीक्षक, सुपरवाइजर, प्रिंसिपल ,अकाउंट्स ऑफिसर जो भी इसके लिए जिम्मेदार हो उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। कि निचले स्तर पर होने वाली बंदरबांट की जानकारी कई बार बड़े अधिकारियों को नहीं होती है और यही कारण है कि वह छोटे अधिकारी बच जाते हैं और बड़े अधिकारी नप जाते हैं ।जबकि सरकार की तरफ से अस्पतालों में व्यवस्था के नाम पर हर साल करोड़ों का बजट आता है और और इस बजट का बंदरबांट होता है। लोगों का राजस्थान सरकार जब निशुल्क दवा चिरंजीवी योजना के तहत निशुल्क इलाज कर रही है और निजी अस्पतालों में भी इलाज मिल रहा है। लेकिन इस इलाज के नाम पर कई अस्पतालों ने लूट मचा रखी है। इस पर जब तक शिकंजा नहीं कसा जाएगा। रोजाना निशुल्क कैंप लगाने के नाम पर लोगों को लाया जाता है और बीमार नहीं होने पर भी कई तरह के ऑपरेशन कर देते हैं। इस तरह की लूट के कई मामले सामने आ चुके हैं । इस तरह के अस्पतालों की स्थानीय स्तर पर पहचान हो जाती है ,लेकिन इसके बावजूद मिलीभगत का खेल जारी रहता है । सरकार को चाहिए कि इन तमाम का जो जाल बना हुआ है, इसको तोड़ना होगा, सरकारी ढांचे को मजबूत करना होगा और सरकारी अस्पतालों मैं भी जिम्मेदारी तय करनी पड़ेगी । वहां भी जिस तरह से डॉक्टर और मरीज और उनके परिजनों के साथ जिस तरह का व्यवहार करते हैं। अब डॉक्टर भी अमर्यादित व्यवहार करने लगे हैं ,वहां कार्यरत नर्सिंग स्टाफ ,सफाई कर्मी , वार्ड बॉयज इनके व्यवहार की तो आप कल्पना नहीं कर सकते । यदि आपने किसी की मामूली से शिकायत कर दी या शिकायत करने की कोशिश की तो फिर आपको और आपके मरीज की शामत आ जाती है। आपकी पिटाई भी हो सकती है, आपको अस्पताल से छुट्टी मिल सकती है, आप के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो सकता है। इस तरह की बातें कई बार मीडिया की सुर्खियां बनती है सरकार को इन तमाम चीजों पर काम करने की जरूरत है । वैभव गालरिया के साथ-साथ अस्पतालों के अधीक्षकों उनके अकाउंट सेक्शन मॉनिटरिंग करने वाले अधिकारी कर्मचारियों पर भी एक साथ 10-15 जगह कार्यवाही हो जाती तो फिर यह स्थिति नहीं रहती। जिन फर्म्स को ठेके दिए गए हैं उन फर्म्स पर एक्शन होना जरूरी है । बहुत सारी एजेंसी गलत आंकड़े देकर करोड़ों रुपए कमा रही है, लेकिन उन पर किसी तरह का एक्शन नहीं होने से उनके वाह रे न्यारे हैं । सरकार के मुखिया अपनी मजबूरी दर्शाने की बजाये अगर इच्छा शक्ति दिखाएं और दोषियों पर कार्यवाही करें तो जनता में वाहवाही होगी । हो सकता है एक दो परसेंट लोग जो इस व्यवस्था से जुड़े हुए हो उनकी नाराजगी जरूर सामने आए लेकिन आम जनता आज ऐसा ही चाहती है । सरकारी अस्पतालों की दशा सुधरे ताकि लोग निजी अस्पतालों जाने से बचे, क्योंकि जिस तरह से निजी अस्पतालों में पैसों के लालच में इंसानियत के साथ खेल हो रहा है वह असहनीय है। मुख्यमंत्री जी अब लाचारी मत काटो अब काम करो। समय बहुत कम बचा है ऐसे में जनता को आपसे बहुत उम्मीदें हैं, आपकी योजनाएं बहुत अच्छी है ,लाभ भी मिल रहे हैं।, लेकिन कई भ्रष्टाचारी लोग मिलकर आपकी योजनाओं पर पलीता लगाने में लगे हुए हैं। जिससे सरकार की बदनामी भी हो रही है जिस दिन सरकार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ एक्शन लेगी जनता सरकार के साथ खड़ी नजर आएगी और निजी अस्पतालों की लूट भी खत्म हो गई और सरकारी अस्पतालों में लोग भरोसे के साथ इलाज कराना जाएंग ।

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