जयपुर। खादय मंत्री प्रताप सिंह का बडबोलापन ही उनके लिए कई बार नुकसान दायक साबित होता है। प्रताप सिंह अपने राजनीतिक  कैरियर में कई बार विवादों में सिर्फ अपनी बयानबाजी के कारण निशाने पर आते हैं।  छात्र राजनीति  के दौरान वे कई बार अपने दादो सा स्वर्गीय भैरोसिंह शेखावत के खिलाफ भी जो चाहे वो बोल देते थे। जिसके चलते भैरोंसिहं शेखावत चाहते हुए भी उन्हें छात्रसंघ अध्यक्ष के पद पर एबीवीपी का टिकट नहीं दे सके और प्रताप सिंह को निर्दलीय चुनाव लड़ना  पड़ा। इसके बाद राजनीति में भी वे लगातार उनके खिलाफ बयानबाजी करते रहते थे जिसके चलते उन्हें भाजपा ने कभी गंभीर नहीं माना। बस कुछ लड़ाकू लोगों का समूह उऩके साथ रहता था। उनकी छवि एक संघर्षशील नेता की बन गई। लेकिन इस दौरान भी उन्होंने अपनी बयानबाजी के कारण कई विरोधी बना लिए। जब वसुंधरा राजे प्रदेश अध्यक्ष बनकर आई तब उऩ्होंने प्रताप सिंह को पहली बार बीजेपी युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया लेकिन फिर भाजपा और युवा मोर्चा के विरोध के चलते उन्हें पद से हटाना पड़ा। इसके बाद जब उन्हें राजाखेड़ा से टिकट दिया गया तो उन्होंने बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ा। इसमें वे चुनाव हार गए। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने पहली बार उऩ्हें लोकसभा का टिकट दिया जिस  पर भी प्रताप सिंह चुनाव हार गए। लेकिन इन सबके पीछे उऩका यदा- कदा नेताओं – कार्यकर्ताओं के खिलाफ की गई बयानबाजी बड़ा कारण माना जा रहा था। प्रताप सिंह दिल के बुरे नहीं है गरीबों और कमजोरों की मदद करते है। लेकिन कभी कभार बोलते समय बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते। कभी वसुंधरा राजे के खिलाफ तो कभी अशोक गहलोत तो कभी सचिन  पायलट के खिलाफ इतना जहर उगलते है कि जब आमने- सामने होते है तो उन्हें खुद को ही समझ नहीं आता होगा कि चार दिन पूर्व क्या बोला था और अब क्या बोल रहे हैं। 

महेश जोशी को गुलामी करने वाला तक कह दिया।

हाल ही में महेश जोशी को गुलाम तक कह दिया। आखिरकार लोकतंत्र और राजनीति में पक्ष विपक्ष होता है सहमत या असहमत होता है लेकिन इसका मतलब किसी को कुछ भी बोल दोगे क्या ? ये कौनसा तरीका है बात करने का उनके बयानों में कई बार गुंडई झलकती है। जबकि लोकतंत्र में गुंडई का कोई स्थान नहीं है। इस तरह के गुंडई वाले शब्दों के कारण प्रताप सिंह पिछला विधानसभा चुनाव हार गए थे। इस बार संयम रखा तो चुनाव जीत गए। मंत्री बनते ही प्रताप सिंह की भाषा फिर असंमित हो गई। बोलते समय कभी भी छोटे- बड़े का ख्याल नहीं रखते है। दो दिन दिन पूर्व जब पत्रकारों ने मंत्री महेश जोशी से पूछा की क्या अधिकारियों की एसीआर भरने का काम मंत्रियों को मिलना चाहिए। इस पर उन्होंने बगैर नाम लिए ही कहा था कि अधिकारी मेरी बात सुनते है और आदेशों की पालना करते है। इस पर प्रताप सिंह ने महेश जोशी का नाम लेते हुए कहा था कि महेश जोशी गुलामी करते है। यदि उऩ्हें गुलामी करनी है तो करे इस पर महेश जोशी ने बहुत ही शालिन तरीके से अपनी बात रखी और साफ तौर पर कहा कि हां में गुलामी करता हूं कांग्रेस की … सौम्यता , सभ्यता, संस्कारों की। मेरी भाषा से कोई आहत नहीं होता। किसी को डर नहीं लगता। महेश जोशी की शालिनता के सामने प्रताप सिंह को माफी मांगनी पड़ी। उन्हें कहना पड़ा कि उऩ्होंने गुलाम शब्द का उपयोग गलती से किया । भले ही उऩ्होंने अपनी गलती मान ली हो लेकिन उन्हें इस बात का ख्याल रखना चाहिए की आदमी की पहचान उसकी भाषा और बोली से होती है। लोकतंत्र में लट्ठ तंत्र नहीं चलता है। 

जहां तक अधिकारियों की एसीआर भरने की बात है तो मंत्रियों को जिम्मेदारी  दी जानी चाहिए। क्योंकि जब विभाग के काम के लिए मंत्री को शिकायत होती है तो उसमें सुधार के लिए उसे पावरफुल तो करना ही पड़ेगा। लेकिन कोई भी व्यक्ति ऩिरंकुश नहीं हो सकता है। इसलिए चैक एंड बैलेंस जरुरी है। वरना तो लोकतंत्र और राजतंत्र में फर्क क्या रह जाएगा। 

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