मूड में बिगाड़े शर्मा और पिंचा के समीकरण

सरदार शहर। राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पूर्व सरदार शहर में हो रहे विधानसभा उपचुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी जहां सहानुभूति की लहर की उम्मीद में ओवर कॉन्फिडेंस में नजर आ रही है। वहीं भाजपा ने उपचुनाव में सत्ताधारी दल ही जीतते हैं ,कहकर पहले ही हथियार डाल दिए है ।लेकिन इस मामले में आरएलपी काफी आक्रामक नजर आ रही है और वह इसे 121 मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने में जुट गई है । हालांकि अभी भी कांग्रेस पार्टी इन दोनों पार्टियों के मुकाबले काफी मजबूत स्थिति में है और चुनाव जीत सकती है।

सरदार शहर के पूर्व विधायक पंडित भंवर लाल शर्मा को ब्राह्मण समाज का खांटी नेता माना जाता है और यही कारण है कि वह लंबे समय तक सरदार शहर के कांग्रेस पार्टी से विधायक रहे । पिछले 5 चुनाव में सिर्फ एक बार वसुंधरा राजे की लहर के दौरान अशोक पिंचा चुनाव जीत सके ।अन्य सभी चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। अब उनके निधन से खाली हुई सरदारशहर से सीट पर कांग्रेस पार्टी ने उनके बेटे अनिल शर्मा को टिकट दिया है। अनिल शर्मा पिछले लंबे समय से अपने पिता के साथ साथ चुनाव प्रचार देखते रहे हैं, चुनाव का सारा मैनेजमेंट देखते रहे हैं या लंबे समय से वह खुद ही पूरा काम संभालते रहे हैं। ऐसे में स्थानीय लोगों के लिए भी वे नए नहीं है ,उन्होंने पार्टी में रहते भी पदाधिकारी के तौर पर लोगों से सतर्क संपर्क रखा है और पिछले कुछ दिन पूर्व ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें ईडब्ल्यूएस बोर्ड का चेयरमैन बनाकर राज्य मंत्री का दर्जा भी दिया था, जिसके चलते भी उनका लोगों से और ज्यादा जुड़ा हो गया । ऐसे में अनिल शर्मा खुद चुनाव मैदान में हैं, तो उन्हें उनके पिता की छवि ,खुद के गवार व्यवहार और राजस्थान में गहलोत सरकार के विकास कार्यों के बदले वोट मिल सकते हैं । उनके नामांकन में खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राज्य मंत्री मडल के आधा दर्जन सदस्य, पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा ,सहित कई नेता पहुंचे और तमाम नेताओं ने स्थानीय नेता जनता को इस बात का भरोसा दिलाया कि यदि वे अनिल शर्मा को विजई बनाते हैं तो सरदार शहर में विकास कार्यों की कमी नहीं आएगी ।स्थानीय लोगों के रुझान के अनुसार देखा जाए तो उन्हें सिंपैथी मिल रही है और सहानुभूति की लहर पर सवार होकर अनिल शर्मा इस चुनाव में जीत की उम्मीद पाले हुए हैं। कांग्रेस पार्टी के लिए भी यह चुनाव लिटमस टेस्ट के समान है होगा क्योंकि ठीक विधानसभा से पूर्व चुनाव से पूर्व हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना चाहेगी और इसके लिए पूरा दम कम लगाने प्रयास करेगी लेकिन जिस तरह से कांग्रेस पार्टी यहां ओवरकॉन्फिडेंस में नजर आ रही है वह उसके लिए नुकसानदायक हो सकता है इसके लिए कांग्रेस पार्टी को कदम उठाना होगा और पूरी ताकत से चुनाव लड़ना होगा सिर्फ इस उम्मीद में कि यहां सहानुभूति लहर का फायदा अनिल शर्मा को मिल जाएगा यह सोचकर चुनाव लड़ने से पार्टी को नुकसान हो सकता है

भाजपा के अशोक पिंचा को भी पार्टी ने एक बार फिर टिकट दिया है, अशोक पिंचा ने नामांकन के दौरान सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया और वह मंच से भावुक हो गए और पिछली हार का बदला लेने के लिए उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं से आह्वान किया । अशोक जैन समुदाय से आते हैं पिछला चुनाव करीब 17000 के लगभग हारे थे । ऐसे में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ सहित तमाम नेताओं की प्रतिष्ठा इस उपचुनाव में दांव पर लगी हुई है । भारतीय जनता पार्टी की कोशिश होगी कि वह इसको कैसे-कैसे करके जीते । इसके लिए भारतीय जनता पार्टी अंदर खाने पूरा जोर लगा रही है। क्योंकि यदि विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा यह उपचुनाव जीतती है तो सतीश पूनिया के लिए राह आसान हो सकती है । लेकिन यदि पार्टी यह चुनाव लूज करती है तो पूनिया के लिए परेशानी बढ़ सकती है । ऐसे में सतीश पूनिया और भारतीय जनता पार्टी का प्रयास होगा कि वह यह चुनाव जीते। इसके लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची बनाई गई है। सब ने अपने हिसाब से प्रचार भी शुरू कर दिया है ।देखना यह है कि यहां पर भाजपा क्या कांग्रेस के गढ़ को तोड़ने में कामयाब होती है? हालांकि सतीश पूनिया ने कहा कि उपचुनाव सत्ताधारी दल जीतते रहे हैं, इस बयान के बड़े मायने हैं। लेकिन भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव को बिल्कुल भी हल्के में नहीं ले रही है। भाजपा के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल है और भाजपा हर कीमत पर इस सीट पर चुनाव जीतना चाहती है।

आरएलडी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने भी लालचंद मूड को चुनाव मैदान में उतार कर ताल ठोक दी है ।हनुमान बेनीवाल इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाना चाहते हैं। हनुमान बेनीवाल के पास इस सीट पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है। लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। ऐसे में बेनीवाल ने डेयरी फेडरेशन के अध्यक्ष लालचंद मूड को चुनाव मैदान में उतारा है । सरदार शहर में जाट समाज की काफी काफी संख्या है और वह किसी भी चुनाव के नतीजों को बदलने का दम कम रखते हैं । जाट वोट भी उनका ही जुड़ जाता है अब तक उनका झुकाव और जुड़ाव कांग्रेस पार्टी से रहा है भंवर लाल शर्मा के समर्थन में वह हमेशा लगते रहे हैं । लेकिन हनुमान बेनीवाल खुद लालचंद मूड के नामांकन में शामिल हुए और उन्होंने पूरी ताकत इन चुनावों में लगा रहे हैं। हालांकि इससे पूर्व भी वह सभी विधानसभा उपचुनाव में पूरी ताकत लगाते हैं और कहीं पर उनका प्रत्याशी तीसरे पर तो ,कहीं पर दूसरे स्थान पर आकर ठहर रहा है। ऐसी स्थिति में हनुमान बेनीवाल यहां भी उम्मीदवार उतारकर कम से कम कांग्रेस पार्टी की तो परेशानी बढ़ा दी है । कांग्रेस पार्टी को हनुमान बेनीवाल के प्रत्याशी के चुनाव मैदान में उतरने से सबसे ज्यादा परेशानी होगी। कुछ परसेंट मतदाता भाजपा के भी वह तोड़ेंगे लेकिन जाट समाज को भी कांग्रेस पार्टी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है ।ऐसे में यदि लालचंद को जाट समाज के वोट मिलते हैं , तो वह कांग्रेस के वोटों में सेंधमारी करने में सफल हो जाएंगे और इससे कांग्रेस के अनिल शर्मा का चुनावी गणित गड़बड़ा सकता है।

अभी तक के नामांकन के कांग्रेस, भाजपा और आरएलपी तीनों ने पूरा दमखम लगाया है । सरदार शहर की हवा कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रही है। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने यदि ओवरकॉन्फिडेंस रखा तो उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है । भाजपा बहुत ही चतुरतापूर्ण तरीके से काम कर रही है और सही दिशा में चल रही है । आरएलपी अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस चुनाव में भी पूरा दमखम लगा रही है। जिससे चुनावी नतीजे को बदला नहीं जा सके । तो कम से कम यह साबित कर सके कि वह राजस्थान में बतौर तीसरा मोर्चा काम कर रही है। क्योंकि यहां पर बहुजन समाज पार्टी चुनाव मैदान से गायब है। लेकिन फिलहाल तो सरदार शहर में आरएलपी ने भाजपा और कांग्रेस दोनों की परेशानी बढ़ा दी है । खासतौर पर अनिल शर्मा और कांग्रेस पार्टी को जाटों के ध्रुवीकरण को रोकना होगा नहीं तो सरदारशहर की सरदारी खतरे में पड़ सकती है।

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