जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही अपनी सरकार के 4 साल पूरे होने पर खुशियां मना रहे हो और सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हो। लेकिन हालात उसके उलट ही है। आजादी के 75 साल बाद भी गांव में भी आज भी दलित ,गरीब ,आदिवासियों की बस्तियों से विकास कार्य दूर ही रहते हैं । तो राजस्थानी जयपुर में भी जिन बस्तियों में या कॉलोनियों में एससी वर्ग या एसटी वर्ग , अल्पसंख्यक वर्ग के लोग बहुत संख्या में रहते हैं वहां समस्याओं की भरमार है । दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्गों की कॉलोनियों और बस्तियों में न प्रॉपर नालिया बनी हुई है और नहीं सड़के बनी हुई है। सड़के बनी है तो सालों पहले बनी है और दो गली छोड़कर ही 5 साल में दो बार बन चुकी है। इन कॉलोनी में सफाई कर्मी और डोर टू डोर कचरा कलेक्शन करने वाली गाड़ियां भी अपनी मर्जी से आती है । स्थानीय नेताओं का भी इन कच्ची बस्तियों पर कोई ध्यान नहीं जाता है।
इन लोगों की नजर में भी भले ही लोग कितने ही विकास कर ले, पढ़ाई ,लिखाई, करले, नौकरी पेशा में आ जाए ,यह रहते दलित और आदिवासी है ।इसलिए वहां पर विकास कार्यों पर कोई भी सरकार ध्यान नहीं देती है । जयपुर शहर की कुछ कच्ची बस्ती, पहले सोसायटी द्वारा बताई गई कॉलोनी या और बाद में जेडीए हाउसिंग बोर्ड द्वारा विकसित की गई कॉलोनी की हालत भी बदतर है। जयपुर के जवाहर नगर में बसी कच्ची बस्ती, सरकार की आंखों के सामने बसी सालों पुरानी कठपुतली बस्ती, 22 गोदाम के आसपास कॉलोनी में रहने वाले दलित, आदिवासी वर्ग के लोग इनमें कहीं सीवरज जाम मिलेगा ,तो कहीं नालियां चौक मिलेगी ।जयपुर के शास्त्री नगर ,भट्टा बस्ती, मंडी खटीकन, ऋषि गालव नगर ,बाल्मीकि कॉलोनी ,हसनपुरा रेगर बस्ती, बलाई बस्ती धानका बस्ती सांगानेर स्थित रामपुरा प्रताप नगर र और सांगानेर थाने के बीच में स्थित मारुति नगर, बैरवा कॉलोनी मैं आज भी पानी की लाइन में नहीं डाली है। यहां के लोग शिकायतें कर कर के थक गए हैं स्थानीय लोगों का कहना है कि लोग जब लोग वोट मांगने आते हैं तब वह जरूर वादा करके जाते हैं लेकिन इन बस्तियों को उपेक्षित ही मानते हैं आज भी इन बस्तियों को दलित बस्तियां अल्पसंख्यक बस्तियां बताकर उपेक्षित माना हुआ है जाहिर सी बात है कि नेता नेता चाहते कि इन बस्तियों का विकास हो और नहीं अधिकारी चाहते जिससे लगता है कि अभी तक भी मानसिकता बदले नहीं है भले ही लोग शहर में रहे या किसी पोस् कॉलोनी में । कांग्रेस राज में भी हजारों की संख्या में पूरे प्रदेश में दलित आदिवासियों अल्पसंख्यकों की कॉलोनियों अवश्य होगी जहां पर सरकार के निर्देशों के बावजूद पट्टे नहीं दिए गए है कनेक्शन मांगने के बावजूद नहीं दिए गए जिससे कि यह लोग गरीब और पिछड़े हुए देखते रहें और सरकारें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती रहे स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ तो स्थानीय लोगों की भी कमी है और कुछ सरकार की मंशा भी दोषी है।