जयपुर । दिल्ली में कांग्रेस पार्टी मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी में मूलभूत परिवर्तन की बात कही है। साथ ही उनके शपथ ग्रहण के बाद लगातार पुराने पदाधिकारियों के इस्तीफे देने का दौर भी जारी है। ऐसे में माना जा रहा है कि राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को भी अपने पद से इस्तीफा देना होगा। लेकिन आखिरकार गोविंद सिंह डोटासरा के बाद प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा इसको लेकर अटकलें जारी है । भाजपा में भी प्रदेश अध्यक्ष बदलने की कवायद तेजी से चल रही है। लगातार एक धड़ा सतीश पूनियां को हटाने को लेकर केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बना रहा है। कांग्रेस में भी एक धड़ा गोविंद सिंह डोटासरा को हटाने और गुटबाजी दूर करने का दबाव बना रहा है। ऐसी स्थिति में राजस्थान की दोनों ही पार्टियों में बदलाव गुजरात विधानसभा चुनावों बाद होता नजर आ रहा है।

सचिन पायलट को मिल सकती पार्टी की कमान

लेकिन विश्व सूत्रों का कहना है कि सचिन पायलट अब तक सीएम बनने में कामयाब नहीं हो सके। ऐसे में उन्हें पीसीसी का चीफ बनाया जा सकता है। जिससे कांग्रेस पार्टी में पायलट आने वाले विधानसभा चुनाव में राजस्थान के स्वाभाविक मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकेंगे। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने साफ कहा है कि वे राष्ट्रीय स्तर से लेकर ब्लॉक स्तर तक बदलाव करना चाहेंगे। खड़के के बयान से साफ हो गया कि राजस्थान में जिस तरह की गुटबाजी चल रही है, उसे रोकने में डोटासरा विफल रहे । इसलिए राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदेश में पार्टी प्रदेश नेतृत्व को बदल सकता है। हालांकी ये बदलाव गुजरात चुनाव के बाद होगा। फिलहाल गुजरात में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं, ऐसे में राजस्थान में कांग्रेस पार्टी बदलाव नहीं करेगी।

वसुंधरा को सौंपी जा सकती है पार्टी की कमान

भाजपा में भी कमान वसुंधरा राजे को सौंपी जा सकती है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां का भी कार्यकाल पूरा हो रहा है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं पर लगातार इस बात का दबाव बनाया जा रहा है कि अब पार्टी की कमान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सौंपी जाए। अब से पूर्व भी दो विधानसभा चुनाव में भाजपा को सफलता मिली है ,वह सफलता वसुंधरा राजे के अध्यक्षीय कार्यकाल में ही मिली है। ऐसी स्थिति में पार्टी की खेमे बाजी और गुटबाजी को दूर करने के लिए वसुंधरा राजे को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की संभावनाएं बढ़ रही है। प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और वसुंधरा राजे के बीच जिस तरह से खेमे बंदी बढ़ी हुई है और पार्टी गुटबाजी गुटबाजी में बैठी हुई है । उसके बाद यह साफ हो गया कि भारतीय जनता पार्टी अगला चुनाव नए प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में ही लड़ना चाहेगी। सतीश पूनिया को हटाकर किसी दूसरे नेता को अध्यक्ष बनाया जाता है तो हो सकता है भाजपा को सफलता नहीं मिले। इसका विरोध भी हो सकता है। लेकिन वसुंधरा राजे को अध्यक्ष बनाए जाने से भाजपा के कार्यकर्ताओं में नाराजगी भी नहीं बढ़ेगी और वसुंधरा राजे मजबूत होकर चुनाव लड़ेगी। ऐसा माना जा रहा है दिल्ली के नेताओं ने भी वसुंधरा राजे की देव दर्शन यात्रा को नहीं रोका है । जाहिर सी बात है कि उन्होंने इस बात के संकेत दिए हैं कि वसुंधरा राजे कार्यक्रम जारी रखें और जनता के बीच जाएं। भाजपा के राष्ट्रीय नेता भी वसुंधऱा राजे को पुरा महत्व दे रहे है। हालांकि सतीश पूनिया की मेहनत में कमी नहीं है लेकिन वसुंधरा राजे की अनदेखी करना महंगा पड़ जाएगा। बहुत से बीजेपी के नेता भी जो आज तक भी सतीश पूनियां को नहीं अपना सके। ऐसे में पार्टी फिर से कमान वसुंधरा राजे को सौंप सकती है।

कांग्रेस – भाजपा में बदले जाएंगे चेहरे

दोनों ही राजनीतिक पार्टियों मैं चेहरे बदल जाने पर है लेकिन चेहरे बदलने से पूर्व पार्टी में बढ़ती हुई खींचतान को देखते हुए अभी कोई निर्णय करने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों में ही प्रदेश अध्यक्ष बदले जा सकते हैं। जिससे 2023 में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ा जा सके और पार्टी में बढ़ती गुटबाजी को रोका जा सके। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी में भी लगातार गुटबाजी बढ़ रही है। पार्टी के मौजूदा नेतृत्व को पता है कि इस ग्रुपबाजी में चुनाव में सफलता हासिल नहीं कर पाएंगे। ऐसी स्थिति में बीजेपी में वसुंधरा राजे के प्रदेश अध्यक्ष बनाने से किसी भी समाज की नाराजगी नहीं बढ़ेगी । वसुंधरा खुद राजपूत और ससुराल जाटों में है और जाट राजघराने की वसुंधरा राजे बहू है। ऐसी स्थिति में सतीश पूनिया के हटाए जाने और वसुंधरा राजे के अध्यक्ष बनाए जाने पर जाट समाज में भी किसी तरह की नाराजगी नहीं आएगी। राजपूत समाज जो सतीश पूनिया के कारण दूर हो रहा था पार्टी से वह भी बीजेपी से वापस जुड़ सकेगा। गोविंद सिंह डोटासरा के हटाने पर सचिन पायलट को अध्यक्ष बनाए जाने की मांग को लेकर खुद जाट समाज के एक दर्जन विधायक पैरवी कर रहे हैं। वे लगातार कह रहे हैं कि अशोक गहलोत का हठाओ और सचिन पायलट को बनाओ । तो ऐसी स्थिति में लगता नहीं कि जाट समाज सचिन पायलट के विरोध में खड़ा होगा। जाट समाज में अशोक गहलोत को लेकर जरूर नाराजगी है । ऐसी स्थिति में वे गहलोत को रोकने के लिए सचिन पायलट के साथ खड़े हो सकते हैं। पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए दोनों ही पार्टियों के नेताओं में जातिगत समीकरण देखते हुए ही फैसला लिया जाएगा । जिसेसे आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को फायदा मिल सके।

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